पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१७

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होती है। साम्प्रदायिकता को फैलाने वाले स्वार्थी लोग इतने चालाकी से इस काम को करते हैं कि लोग उन कुछ लोगों के हितों को अपने हित मानने की भूल कर बैठते हैं। उन स्वार्थी - साम्प्रदायिक लोगों के भौतिक स्वार्थ लोगों को अपने आध्यात्मिक हित नजर आएं, इसके लिए वे धर्म का सहारा लेते हैं । चूंकि धर्म से लोगों का भावनात्मक लगाव होता है, लोगों की आस्था जुड़ी होती है इसलिए इसका सहारा लेकर उनको आसानी से एकत्रित किया जा सकता है। लोगों की आस्था व विश्वास को साम्प्रदायिकता में बदलकर, दूसरे धर्म के लोगों के खिलाफ प्रयोग करके स्वार्थी-साम्प्रदायिक लोग अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं । धर्म और साम्प्रदायिकता न केवल भिन्न हैं, बल्कि परस्पर विरोधी हैं। साम्प्रदायिक व्यक्ति कभी धार्मिक नहीं होता, लेकिन वह धार्मिक होने का ढोंग अवश्य करता है। साम्प्रदायिक व्यक्ति की धार्मिक आस्था तो होती नहीं इसलिए वह ऐसे कर्मकाण्ड करता है जिससे कि बहुत बड़ा धार्मिक दिखाई दे। मंदिरों-मस्जिदों के लिए अत्यधिक धन जुटाएगा, कथाओं-कीर्तनों का आयोजन करेगा। धार्मिक सभाएं- जुलूस आयोजित करेगा ताकि वह सबसे बड़ा धार्मिक और धर्म की सेवा करने वाला नजर आए। अपने धर्म के मूल्यों से, धर्म की शिक्षाओं से उसका कोई लेना-देना नहीं होता। साम्प्रदायिक लोग साम्प्रदायिक-दंगे आयोजित करके – हिंसा, आगजनी, लूट-खसोट, बलात्कार आदि अपराध करते हैं, जबकि उनका धर्म उन कुकृत्यों की कोई इजाजत नहीं देता। ये काम कोई धर्म-सम्मत काम नहीं है बल्कि धर्म के विरोधी हैं लेकिन स्वार्थी साम्प्रदायिक लोग इसको धर्म की आड़ में बेशर्मी से करते हैं । साम्प्रदायिक हिन्दू हिंसा करके धर्म की उदारता और सहिष्णुता को समाप्त करते हैं तो साम्प्रदायिक मुस्लिम इस्लाम यानी शान्ति के संदेश का अपमान करते हैं। साम्प्रदायिक हिन्दू और साम्प्रदायिक मुसलमान या अन्य धर्म का साम्प्रदायिक व्यक्ति दूसरे धर्म के लोगों को तो नुक्सान पहुंचाकर मानवता को नुक्सान पहुंचाता ही है, इसके साथ वह सबसे पहले अपने धर्म का और उसको मानने वाले लोगों को नुकसान पहुंचाता है। कट्टर या साम्प्रदायिक व्यक्ति की शत्रुता दूसरे धर्म के कट्टर और साम्प्रदायिक व्यक्ति से नहीं होती बल्कि अपने ही धर्म को मानने वाले उदार व्यक्ति और सच्चे धार्मिक से होती है। कट्टर व साम्प्रदायिक लोगों की दोस्ती उसी तरह होती है जिस तरह कहावत है कि 'चोर-चोर मौसेरे भाई' इसलिए वे उदार लोगों के लिए अपमानजनक मुहावरे और वाक्य प्रयोग करते हैं जैसे— कायर, गद्दार, नपुसंक, धर्म-द्रोही आदि । सच्चा धार्मिक या सच्चे अर्थों में धर्म को मानने वाला कभी साम्प्रदायिक 18 / साम्प्रदायिकता