पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/२४

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लिए कोई अभियान नहीं चलाया इसके नेता विष्णुहरि डालमिया, अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया न तो संत हैं और न ही उनकी कोई धार्मिक आस्था है बल्कि वे राजनीतिक व्यक्ति हैं जो विशेष वर्गों (शोषक) के राजनीतिक हितों को साध रहे हैं । शहीद भगतसिंह ने 'धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम 3 लेख में धर्म और साम्प्रदायिकता पर विचार प्रकट करते हुए दोनों में स्पष्ट अन्तर किया है। उन्होंने लिखा कि रूसी महात्मा टालस्टॉय ने अपनी पुस्तक (एसे एंड लेटर्स) में धर्म पर बहस करते हुए उसके तीन हिस्से किये हैं- 1. एसेन्शियल ऑफ रेलिजन – यानी धर्म की जरूरी बातें अर्थात सच बोलना, चोरी न करना, गरीबों की सहायता करना, प्यार से रहना वगैरह। 2. फिलासफी ऑफ रेलिजन – यानी जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, संसार- रचना आदि का दर्शन। इसमें आदमी अपनी मर्जी के अनुसार सोचने और समझने का यत्न करता है । 3. रिचुअल्स ऑफ रेलिजन – यानी रस्मो-रिवाज वगैरह । सो यदि धर्म पीछे लिखी तीसरी और दूसरी बात के साथ अन्धविश्वास को मिलाने का नाम है, तो धर्म की कोई जरूरत नहीं। इसे आज ही उड़ा देना चाहिए। यदि पहली और दूसरी बात में स्वतन्त्र विचार मिलाकर धर्म बनता हो, तो धर्म मुबारक है।' इस तरह कहा जा सकता है कि साम्प्रदायिकता की उत्पत्ति का कारण धर्म नहीं है और न ही अनेक धर्मों के लोगों का साथ रहना, बल्कि इसका कारण वर्ग विशेष के निहित स्वार्थ हैं। यदि धर्म और धार्मिक आस्थाएं इसका कारण होतीं तो साम्प्रदायिकता की उत्पत्ति आधुनिक युग में न होती बल्कि इसकी उत्पत्ति काफी पहले हो गई होती क्योंकि आधुनिक युग के मुकाबले पहले लोगों की धार्मिक आस्थाएं अधिक पुख्ता थीं, जबकि आधुनिक काल में धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्नचिह्न लगा है। दिलचस्प बात यह है कि साम्प्रदायिकता की शुरूआत भी आधुनिक काल में हुई और इसको आगे बढ़ाने वाले मंदिरों-मस्जिदों गुरुद्वारों-गिरिजाघरों में बैठे पुजारी - महंत नहीं थे, बल्कि राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले लोग थे । स्वतंत्रता पूर्व के काल में राजनीतिक लोगों ने साम्प्रदायिकता को धर्म की आड़ लेकर आगे बढ़ाया और स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद विशेषकर 1980 के बाद राजनीतिक लोगों ने धार्मिक आडम्बर का चोला धारण करके राजनीतिक लाभ उठाया। इस तरह स्पष्ट है कि साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक विचारधारा है जो सत्ताधारी वर्ग के हितों की रक्षा के लिए काम करती है, लेकिन यह धर्म का आवरण ओढ़कर या धर्म की आड़ लेकर ऐसा करती है और लोगों की धार्मिक भावनाओं से इसमें ईंधन का काम लिया जाता है । धर्म और साम्प्रदायिकता / 25