पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/२३

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लोगों की धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल करने के लिए साम्प्रदायिकता धर्म की विकृत व्याख्या करती है। बाहरी आडम्बर व कर्मकाण्डों को ही धर्म के रूप में स्थापित करती है। धर्म को उसकी नैतिक व मानवीय शिक्षाओं से अलग करके नमाज पढ़ना, दाढ़ी-चोटी रखना, जनेऊ- तिलक धारण करना या अन्य धार्मिक पहचान के चिन्हों को ही धर्म मान लेती है। यदि धर्म को व्यक्ति के आचरण से पहचानकर मात्र रामनामी चादर ओढ़ने या गेरूए रंग के पटके डालने और लम्बा तिलक लगाने जैसे बाहरी कर्मकाण्डों को ही धर्म के रूप में स्थापित कर दिया जाए तो धर्म के नाम पर किए जाने वाले कुकृत्यों व आपराधिक कार्यों को भी धार्मिक कार्यों की परिधि में आसानी से लाया जा सकता है। पाखण्डी बाबाओं द्वारा भोली-भाली लड़कियों का यौन शोषण जैसा जघन्य कृत्य भी लोग धार्मिक समझकर सहन कर लेते हैं। अपराधिक कार्यों में लिप्त कथित बाबाओं, संन्यासियों आतंकियों को भी धर्म में सहारा मिल जाता है। असल में तो धर्म कुछ मूल्यों- आदर्शों के समुच्चय का नाम है, जिनको कि व्यक्ति को धारण करना होता है। व्यक्ति की धार्मिक पहचान को बढावा देने के लिए ही धर्म को जीवन शैली कहा जाता है, क्योंकि शैली तो बाहरी होती है और मूल्य व आदर्शों को आचरण में ढालना होता है। साम्प्रदायिकता न तो धार्मिक कारणों से पैदा होती है और न वह धार्मिक समस्याओं को उठाती है इसलिए साम्प्रदायिकता का समाधान धार्मिक आधार पर नहीं हो सकता । हिन्दू साम्प्रदायिकता और मुस्लिम साम्प्रदायिकता की लड़ाई हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह कुछ वर्गों के राजनीतिक हितों की टकराहट है, इसलिए इसका समाधान भी राजनीतिक पहलकदमी में है। धर्म की आड़ में छुपी राजनीति और राजनीतिक हितों की कलई खोलकर ही इससे मुकाबला किया जा सकता है । स्वतन्त्रता से पहले मुस्लिम लीग साम्प्रदायिकता की राजनीति करती थी, लेकिन उसकी एक भी मांग धार्मिक नहीं थी। मुस्लिम लीग के 14 सूत्री मांग-पत्र का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं था। सारी मांगें राजनीतिक थी । इसी तरह स्वतन्त्रता के बाद आर. एस. एस. साम्प्रदायिकता का चैंपियन है। सारी राजनीति धर्म की आड़ लेकर की जाती है अपने संगठन का राजनीतिक चरित्र भी छिपाया जाता है। लोगों में स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक संगठन की छवि बनाई जाती है, जबकि होती है शुद्ध सत्ता हथियाने की राजनीति । कोई संगठन अपने को सांस्कृतिक संगठन कैसे कह सकता है यदि उसका पहला मकसद ही राजनीतिक हों यानी 'हिन्दू राष्ट्र' बनाना । यदि किसी राष्ट्र का चरित्र निर्धारण करने के काम को भी अराजनीतिक श्रेणी में रखा जाएगा तो राजनीतिक कार्य किसको कहा जाएगा। 'विश्व हिन्दू परिषद्' ने कभी भी मन्दिरों में सुधारों के 24 / साम्प्रदायिकता