पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/४०

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किया और जनसंघ अपने हिन्दू राष्ट्र के नारे पर कायम रहा, लेकिन उसका बहुत सीमित आधार रहा। पर सातवे दशक में उसने धर्मनिरपेक्ष होने का ढ़ोंग करना और स्वयं को धर्मनिरपेक्ष होने का ढोल पीटना शुरू किया। 1977 में जब जनता पार्टी बनी और जनसंघ का उसमें विलय हुआ तो जनसंघ के लोगों दिल्ली में महात्मा गांधी की समाधि पर धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को अपनाने की शपथ ली थी, लेकिन साम्प्रदायिक शक्तियों के मन में धर्मनिरपेक्षता के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए जब घोर साम्प्रदायिक संगठन से नाता तोड़ने की बात आई तो उन्होंने साम्प्रदायिक संगठन से नाता तोड़ने की बजाए सरकार को गिराना उपयुक्त समझा । वास्तव में तो यही छद्म धर्मनिरपेक्षता है इससे उनकी प्राथमिकता का अनुमान लगाया जा सकता है। यह भी सही है कि जब धर्मनिरपेक्षता के नाम पर राजनीति करनेवाले दल भी सत्ता के लिए इस सिद्धांत को त्याग देते हैं तो साम्प्रदायिक शक्तियों व दलों के छद्म धर्मनिरपेक्षता के आरोप को आधार मिल जाता है। चुनावी लाभ के लिए धर्मनिरपेक्ष दलों ने अपनी विचारधारा को समय-समय पर तिलांजलि भी दी है। कांग्रेस पार्टी ने स्वतंत्रता पूर्व से ही धर्मनिरपेक्षता की नीति अपनाई थी, लेकिन स्वतंत्रता के बाद लम्बे समय तक शासन में रहने के बावजूद लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी और कभी अल्पसंख्यकों के तो कभी बहुसंख्यकों के वोट प्राप्त करने के लिए धर्मनिरपेक्षता को त्याग दिया। मुस्लिम धर्म के कठमुल्लाओं को खुश रखने के लिए तथा उनकी अपील पर मुस्लिम वोटों को प्राप्त करने के लिए शाहबानो केस में अनुचित हस्तक्षेप किया तो अयोध्या के राम मन्दिर का ताला खुलवाकर बहुसंख्यकों को खुश करने की कोशिश की । इसी तरह 1992 में बाबरी मस्जिद को भी ढहने से रोकने के लिए कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने प्रभावी कदम नहीं उठाए । समाजवादी पार्टी व उसके नेता मुलायम सिंह भी अपने चुनावी लाभ के लिए धर्मनिरपेक्षता को छोड़कर किसी एक पक्ष की ओर झुकते रहे हैं। भारतीय राजनीति में वामपंथी पार्टियों को ही सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष कहा जा सकता है। धर्मनिरपेक्षता एक विचारधारा व मूल्य का नाम है जिसे सभी धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले दलों को अपनाना व पालन करना चाहिए। सुविधानुसार धर्मनिरपेक्षता को अपना लेना या त्याग देना धर्मनिरपेक्षता नहीं है । संदर्भ 1. गांधी: एक पुनर्विचार; विपन चन्द्रा के लेख; ( गांधी जी, धर्म निरपेक्षता और साम्प्रदायिकता से ); पृ. 49; सहमत, नई दिल्ली; 2004 2. साम्प्रदायिकता और संस्कृति के सवाल; सहमत प्रकाशन, दिल्ली; धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता / 41