पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/३९

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दूसरे सम्प्रदाय के विरुद्ध भड़काने उकसाने का काम किया और स्वतंत्रता- आन्दोलन के सामने जब यह एक चुनौती बन गई तो इसका मुकाबला करने के लिए धर्मनिरपेक्षता को अपनाया गया। 'स्वतंत्रता आन्दोलन में समाज के सभी वर्गों की हिस्सेदारी तभी संभव थी, जब सबको अपनी स्वतंत्रता नजर आती। इसलिए स्वतंत्रता आन्दोलन के नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाना अनिवार्य समझा था। धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने के लिए साम्प्रदायिक लोग एक पैंतरा लेते हैं और कहते हैं कि धर्मनिरपेक्षता एक विदेशी विचार है, यह भारतीय विचार नहीं है। यह बात न तो तर्क के आधार पर सही है और न ही तथ्यपरक है | विचार किसी देश के भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित नही होतें, न ही विचारों को किसी देश की सीमा तक बांध कर रखा जा सकता है। विचारों की प्रकृति वैश्विक होती है। यदि किसी विचार या दार्शनिक सिंद्धात को यह मानकर छोड़ा जायेगा या अपनाया जायेगा कि वह विदेशी है या स्थानीय तो यह संकीर्ण मानसिकता तो होगी ही बल्कि बहुत सारे सिद्धांत - विचार, तौर-तरीके हमें छोड़ देने होंगे। साम्प्रदायिक लोग तो समाजवाद और लोकतंत्र को भी विदेशी कहकर खारिज कर सकते हैं। जब कोई विचार या सिद्वांत अपना सामाजिक अस्तित्व बना लेता है तो उस पर किसी एक का नहीं बल्कि समस्त मानवता का हक होता है। यदि कोई समाज किसी विचार को अपने विकास के लिए जरूरी समझता है तो बिना किसी हिचकिचाहट के अपनाना ही चाहिए। यदि देखा जाए तो मनुष्य ने एक दूसरे से सीखकर ही तरक्की की है।‘धर्मनिरपेक्षता' शब्द बेशक 'सेक्युलर' शब्द का अनुवाद है लेकिन इसके विचार में जरा भी विदेशीपन नहीं है। साम्प्रदायिकता कभी भी खुले आम अपने इरादों को उजागर नहीं करती, वह अपने चरित्र को छिपाने के लिए तरह-तरह के ढ़ोंग और पाखंड करती है । उसका हमेशा एक गुप्त एजेंडा (मंतव्य) होता है। अपने मंतव्यों को पूरा करने के लिए बहुरूपिये की तरह कोई भी भूमिका अपना लेती है। साम्प्रदायिक तत्व इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता को पूरी तरह नकारकर वह लोगों का समर्थन हासिल नहीं कर सकते, इसलिये वे कभी धर्मनिरपेक्षता की जगह पंथनिरपेक्षता की बात करके इसको नकारने की कोशिश करते हैं तो कभी धर्मनिरपेक्ष लोगों को छद्म- धर्मनिरपेक्ष कहकर स्वयं को सच्चा धर्मनिरपेक्ष कहते हैं और कभी सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं । अन्ततः ये सब धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुँचाने की चालें हैं। उदाहरण के रूप मे हम देख सकते है कि जब भारत को आजादी मिली तो जनसंघ को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों ने धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार 40 / साम्प्रदायिकता