पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/५३

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अपराधीकरण अपराध जगत के कुछ शक्तिशाली तत्त्व राजनीति में भाग ले रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि यह बहुत ही खतरनाक जुड़ाव है। साम्प्रदायिक दंगों में गरीब लोगों का सबसे अधिक नुकसान होता है चाहे वे किसी धर्म या सम्प्रदाय से सम्बन्धित हों। यद्यपि यह बात भी सही है कि अल्पसंख्यक वर्ग का अधिक नुकसान होता है लेकिन होते वे भी गरीब ही हैं। दंगों से उतपन्न अशांति व कर्फ्यू के कारण जो दिहाड़ीदार है, मजदूरी करता है, छोटा-मोटा काम करता है जैसे रिक्शा चलाना, फलों की रेहड़ी लगाना आदि उसके सब काम बंद हो जाते हैं और जो व्यक्ति हर रोज कमाकर खाता है वह भूखे मरने के कगार पर पहुंच जाता है। दंगों में दुकानों व फैक्टरियों पर हमला करके नुकसान पहुंचाया जाता है जिससे उसमें काम करने वाले लोग बेरोजगार हो जाते हैं। उच्चवर्ग के लोग बड़ी चालाकी से निम्नवर्ग के लोगों को अपनी साम्प्रदायिक रणनीति के जाल में फंसा लेते हैं और उनको दूसरे धर्म के गरीबों के खिलाफ हिंसा करने के लिए तैयार कर लेते हैं। सामान्य दिनों में कोई फैक्टरी या दुकान का मालिक अपने नौकर से उतने सम्मान व शिष्टता से पेश नहीं आता जितना कि दंगों के दिनों में साम्प्रदायिक हिंसा से जिनके राजनीतिक या आर्थिक हित पूरे होते हैं वे लोगों को भड़काने का काम करते हैं। दूसरे, जब हिंसा होती है तो गरीब व निर्दोष लोग एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं व एक- दूसरे को मारते हैं। तीसरे, दंगा करवाने वाले स्वार्थी लोग हिंसक परिस्थितियों से राजनीतिक-आर्थिक लाभ उठाने में जुट जाते हैं। जो लोग हिंसा में शामिल होते हैं वे अपराधिक घटनाओं में लिप्त होने के कारण गिरफ्तार कर लिए जाते हैं लेकिन हिंसा के आर्किटेक्ट योजनाकारों का कुछ नहीं बिगड़ता। साम्प्रदायिक दंगों में बहुत सी जानें गई हैं व भौतिक नुकसान हुआ है जिसका अनुमान समय समय पर भारत सरकार ने तथा स्वयंसेवी संगठनों ने लगाया है। प्रख्यात समाजशास्त्री असगर अली इंजीनियर ने साम्प्रदायिक सद्भाव को समर्पित अपनी संस्था के माध्यम से इन दशकों में देश में हुए लगभग सभी दंगों का अध्ययन किया है। उन्होंने अपने अध्ययन में चौंकाने वाले व चिन्ता में डाल देने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए हैं, जिन पर नजर डालना समीचीन होगा। तालिका सांप्रदायिक घटनाओं की आवृत्ति और मौतें (1950-2002) वर्ष घटनाएं मारे गए 1950 56 50 1954 84 34 54 / साम्प्रदायिकता घायल हुए 256 512