पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/५२

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साथ ही जिन कस्बों का साम्प्रदायिक तनाव का इतिहास है वे और भी अधिक संवेदनशील होते हैं। इन बातों को ध्यान में रखकर आसानी से समझा जा सकता है कि मुरादाबाद, अलीगढ़, मेरठ, जमशेदपुर, बनारस, भिवंडी, मालेगांव, पुराना हैदराबाद शहर आदि में साम्प्रदायिक दंगों की घटनाएं बार-बार क्यों घटती हैं। हालांकि इसका यह अर्थ नहीं है कि बड़े नगरों या मुम्बई जैसे महानगर दंगों के लिए संवेदनशील नहीं हैं। बाबरी मस्जिद गिरने के बाद मुम्बई और कलकत्ता में जो घटित हुआ, उसे हम सब जानते हैं। मुम्बई में सांप्रदायिक दंगे प्रचण्डता से फैले । वास्तव में मुम्बई में 1984 में भी दंगे हुए थे। शिवसेना के उभार से मुम्बई अत्यधिक दंगा-संवेदन क्षेत्र बन गई है। हालांकि यहां हम मध्यम आकार के शहरों में साम्प्रदायिकता को हवा देने वाले कुछ कारणों पर प्रकाश डालेंगे । वोट आधारित लोकतन्त्र में भारी अनुपात में अल्पसंख्यक आबादी वाले शहरों में अभिजात वर्ग के बीच राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता से साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि दोनों सम्प्रदायों के अभिजात वर्ग साम्प्रदायिक पहचान के आधार पर मतदाताओं को रिझाते हैं और उनको अपने पीछे एकत्रित करने की कोशिश करते हैं। मेरठ में लगभग 40 प्रतिशत मुसलमान हैं। 1982 के मेरठ दंगों में मन्दिर - मजार विवाद केवल दो अभिजात वर्गों की राजनीतिक आकांक्षाओं की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति थी। अपने चुनावी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए योजनाबद्ध प्रचार के जरिये हिंदुओं की मानसिकता पर प्रभाव डालने की कोशिश की गई । साम्प्रदायिक दंगों में आपराधिक गिरोहों की भूमिका में वृद्धि हुई है। बड़ौदा के दंगे इसका क्लासिक उदाहरण हैं। अवैध शराब के तस्करी में लिप्त और मुसलमान दो गिरोहों के बीच प्रतिद्वन्द्विता सितम्बर - अक्तूबर 1982 में साम्प्रदायिक दंगों के रूप में फैली । शिव कहार के नेतृत्व वाले एक गिरोह पर सत्ताधारी कांग्रेस के एक वर्ग का वरदहस्त था । कथित तौर पर सत्ताधारी पार्टी का यह वर्ग इन तत्वों को प्रोत्साहित कर रहा था । यह भी ध्यान देने की बात है कि आजकल चुनावों में जीत हासिल करने के लिए राजनीतिज्ञों को अपराधियों से धन और बाहुबल दोनों चाहिए। इसके बदले में वे इन गिरोहों को किसी भी कानूनी कार्रवाई से छूट दिलाते हैं। मुरादाबाद और जमशेदपुर के दंगों में भी समाज-विरोधी तत्वों का जुड़ाव जग जाहिर है । इन अनुभवसिद्ध आंकड़ों का यदि कोई संकेत है तो यही कि भविष्य में यह खतरा और बढ़ेगा। सबसे खराब यह बात है कि अपराधी गिरोह बहुत तेजी से स्वतन्त्र सत्ता ग्रहण कर रहे हैं। राजनीतिज्ञों को उनकी उतनी ही जरूरत है जितनी कि उनको राजनीतिज्ञों की है। इसे अपराध का राजनीतिकरण कहा जाए या राजनीति का साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक हिसां / 53