पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/६७

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गाय- प्रेम और साम्प्रदायिकता पिछले कुछ समय में हरियाणा में स्तब्ध कर देने वाली घटनाएं घट रही हैं, जिनका सम्बन्ध गाय से है। दशहरे के दिन झज्जर के पास दुलीना पुलिस चौकी पर मरे हुए पशुओं की खाल उतारकर गुजारा करने वाले पांच दलितों को पीट-पीट कर मार डाला गया। अफवाहें फैलाई गई कि वे गोकशी कर रहे थे। जबकि ऐसा कुछ नहीं था। उसके बाद ईसराना (जिला पानीपत) में मरे हुए बछड़े की खाल उतारते हुए दलितों को पीट-पीट कर भगा दिया गया। करनाल में भी ऐसी घटनाएं घटी और जींद में एक ट्रक जला दिया गया। 'गोरक्षा' का राष्ट्रीय सम्मेलन असंध में होने जा रहा है। पंजाब के किसी स्वामी ने मांग की है के गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाये। ये सब घटनाएं सोचने पर मजबूर करती हैं कि गाय-प्रेम के विस्फोट के पीछे क्या कारण है। हरियाणा जैसे क्षेत्र में गाय इतना संवेदनशील मुद्दा है कि एक गाय की रक्षा के लिए बल्कि मरी हुई गाय के लिए, पांच-पांच इंसानों की हत्या की जा सकती है। इससे जीव- प्रेम पर भी विचार करना जरूरी है कि क्या यह धर्मशास्त्रों के अनुकूल है कि गाय के लिए, इंसान को भी मारा जा सकता है । हरियाणा कृषि प्रधान राज्य है। कृषि और पशुपालन का व्यवसाय आपस में इतना गुंथा हुआ था कि पशुओं के बिना कृषि और कृषि के बिना पशु निरर्थक लगते थे। गाय खेती के लिए महत्वपूर्ण पशु रहा है। दूध के लिए और विशेषकर बछड़ों के लिए । बैलों के द्वारा हल जोतने वाले समाज में, अच्छी पैदावार के लिए गाय जरूरी है । इस कारण गाय के साथ एक संवेदनात्मक और आर्थिक लगाव भी रहा है। गाय समृद्धि का पैमाना भी रही है। लेकिन आधुनिक समाज में खेती का स्वरूप बदल गया है। खेती का बहुत सारा काम अब मशीनों से होने लगा है, उसमें पशुओं पर निर्भरता कम हो गई हैं। दूध के व्यवसाय के लिए गाय की अपेक्षा भैंस अधिक लाभदायक है। इसलिए अब गाय की समाज में स्थिति भी बदल गई है । पहले गाय अमीरों के घरों की शोभा थी और अब गरीबों की मजबूरी है। किसी अमीर के पास यदि गायें हैं तो विलायती/अमेरिकन गायें हैं, उनके बछड़े बैल नहीं बनते। ये गायें रखना अब समृद्धि का सूचक है और इससे 68 / साम्प्रदायिकता