पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/६८

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किसी की धार्मिक भावनाएं नहीं जुड़ी बल्कि आर्थिक हित जुड़े हैं। साठ के दशक में आखिरी सालों में शुरू हुई श्वेत क्रांति गाय की जगह भैंस पर निर्भर थी । आज हरियाणा में भैंसों की संख्या और आर्थिक महत्व ने गाय के महत्व को पीछे कर दिया है। 1997 में मादा भैंसों की संख्या 14991 और 1998 में 13072 थी। दूसरी ओर 1997 में मादा गायों की संख्या 3631 थी और 3057 थी। (हरियाणा का स्टैटिक्ल एबस्ट्रेक्ट ) । गाय की कद्र इतनी घट गई है कि पहले पुरोहित / ब्राह्मण का हर अवसर पर अपने यजमान से 'गो-दान' लेना नहीं भूलता था, चाहे मृत्यु का ही अवसर क्यों न हो। लेकिन अब कोई ब्राह्मण/ पुरोहित भी गाय दान में नहीं लेता, उसके बदले में पांच रुपये नकद लेना अधिक श्रेयस्कर समझता है। दान में यानी मुफ्त में गाय लेना भी अब का सौदा है और 'संत शिरोमणि' आचार्य गिरिराज किशोर फतवा दे रहे हैं कि 'गाय का जीवन मनुष्य से कीमती है और उसकी हर हालत में रक्षा की जानी चाहिए।' धर्म की व्यवस्था देने वाले और शास्त्रों के ज्ञाता पुरोहित गो-दान की महिमा का बखान करते नहीं थकते। ‘गो-रक्षा' का संदेश किसके लिए है। ग्रामीण लोग, कृषि करने वाले लोग तो सीधे होते हैं, जो उनके काम का होता है, उसे रखते हैं, उसी से प्रेम करते हैं, जो उनकी खेती में काम का नहीं होता उसको छोड़ देते हैं । वे कोई ढ़ोंग नहीं करते। उनका पशु- प्रेम कोई सिद्धांत या धार्मिक आडम्बर नहीं है, बल्कि ठोस व्यावहारिक है। गाय अब किसी काम की नहीं है इसलिए वे उसको सिर्फ चराने के लिए नहीं रख सकते । खेती में उपयोगिता की कसौटी ही अंतिम कसौटी है। किसान हमेशा भैंस से कटड़ी या मादा भैंस और गाय से बछड़ा यानी भविष्य का बैल पैदा होने की कामना करता था। क्योंकि ये दोनों उसकी आर्थिक रीढ़ थे । बड़ी होकर भैंस दूध देगी और बैल हल जोतेंगे, जिससे कि किसान समृद्ध होगा। कटड़ी वाली भैंस और बछड़े वाली गाय की कीमत बाजार में हमेशा ज्यादा रही है। इसलिए यदि किसान के घर कोई बछड़ी यानी भविष्य की गाय और भैंस कटड़ा पैदा करे तो वह कई दिन तक उदास रहता है। किसान के जीवन में गाय का महत्व सिर्फ बछड़े यानी बैल पैदा करने की वजह से था । इसलिए उसका सम्मान व आदर था। अब किसान को चूंकि बैलों की जरूरत नहीं है, इसलिए गाय का आदर भी घट गया । महंगाई के जमाने में पशुपालन महंगा काम और घाटे का सौदा है। इसलिए किसान गाय को अपने घर से भगा देते हैं या फिर जैसे पहले कटड़ों को कसाइयों को बेच देते हैं, उसी तरह गाय को भी बेच देते हैं। यह सवाल सीधा अर्थशास्त्र से जुड़ा सवाल है। गाय- प्रेम और साम्प्रदायिकता / 69