पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/७३

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हैं, जो आम लोगों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं। लेकिन साम्प्रदायिक लोगों को परंपरा में और संस्कृति में कोई रूचि नहीं होती। प्रख्यात कथाकार मुंशी प्रेमचंद ने ठीक ही कहा था कि 'साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति का लबादा ओढ़कर आती है, नये रूप में आते हुए उसे लज्जा आती है। साम्प्रदायिक शक्तियां सांस्कृतिक प्रतीकों को ही अपनी राजनीति का आधार मानती है। गाय भी इसी योजना के तहत उनके लिए लाभकारी हो जाती है । इस राजनीति को समझने की आवश्यकता । मरे हुए जानवरों की खाल उतारने का भी अर्थशास्त्र है, जिस पर बड़े लोगों की नजर है। जानवरों की खाल उतराने और उनकी हड्डियों को बेचकर गुजारा करने वाले लोग अति गरीब हैं और कच्चे चमड़े का यह करोबार काफी बड़ा है। इस क्षेत्र को बड़े व्यवसायी अपने हाथ में लेने के लिए लालायित हैं। अमीर लोगों को महीन कपड़े, कॉफ लैदर के कपड़े, टोपी, बैल्ट, जूते तो चाहिए लेकिन उनकी प्रक्रिया से वे मुंह छिपाना चाहते हैं। पहले चमड़े का समस्त कारोबार गरीब कारीगरों के हाथ में था। लेकिन अब वह बड़े धन्ना सेठों के हाथ में है, जो दलित जातियों से सम्बन्धित नहीं है और इस व्यापार से अरबों रुपयों का मुनाफा कमा रहे हैं। इनके प्रति समाज में घृणा दिखाई नहीं देती, इनको समाज में आदर की नजर से देखा जाता है। टाटा - बाटा, लिबर्टी आदि पूंजीपतियों के हाथ में है, जो इस कच्चे चमड़े पर निर्भर हैं। बड़ी पूंजी इस क्षेत्र को भी अपने कब्जे में लेना चाहती हैं। पूंजी निवेश करके, ठेके लेकर इसका नियंत्रण बड़ी पूंजी के अधीन होगा और काम यही गरीब लोग करेंगे। इन धन्नासेठों के हाथ में करोबार आएगा, तो इस काम को भी घृणित काम नहीं माना जाएगा। समाज के नफरत के शिकार हमेशा गरीब आदमी होते हैं । यह देखना दिलचस्प है कि साम्प्रदायिक शक्तियां साम्राज्यवादी अमेरिकी नीतियों की पिछलग्गू है वहां गो-मांस सबसे ज्यादा खाया जाता है इस कारोबार में कितने अमीर व साम्प्रदायिक लोग संलग्न है इसको देखना भी रुचिकर होगा। बंगलादेश में सबसे अधिक गो-मांस भेजा जाता है जिसमें कि गरीब दलित मुसलमान शामिल नहीं हैं बल्कि अत्यधिक धनी लोग शामिल हैं। घी में गाय की चर्बी मिलाकर बेचने का प्रसंग अभी लोगों की स्मृतियों में है जो उन्हीं के द्वारा संचालित किया जा रहा था जो कि गाय-प्रेम के नाम पर गरीबों को मारते हैं और धर्म की ध्वजा उठाए घूमते हैं । असल में मांस और चमड़ा उतारने का कारोबार मुख्यत: मुसलमान व दलितों के हाथ में है जो हिन्दू सवर्ण जातियों की घृणा के शिकार रहे हैं। 74 / साम्प्रदायिकता