पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/७५

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साम्प्रदायिकता और इतिहास साम्प्रदायिकता की शुरूआत आधुनिक काल में हुई है, लेकिन साम्प्रदायिक शक्तियां इसका फैलाव इतिहास के मध्यकाल तक ले जाती हैं और इतिहास की घटनाओं को तोड़ मरोड़कर पेश करती हैं। वे इतिहास से कुछ घटनाओं को चुनकर उनकी व्याख्या साम्प्रदायिक आधार पर करती हैं। यह साबित करने की कोशिश करती हैं कि विभिन्न धर्मों के मानने वालों के बीच हमेशा विवाद व हिंसा होती रही है, ऐसा करके वे यह साबित करना चाहती हैं कि साम्प्रदायिकता स्वाभाविक है व इसका सहारा लेकर वे अपने द्वारा वर्तमान में किए जा रहे अमानवीय कार्यों को उचित ठहराती हैं और साम्प्रदायिक चेतना के निर्माण करने में इतिहास का पूरा दुरुपयोग करती हैं। इसके लिए इतिहास से कुछ चरित्रों को व कुछ घटनाओं को चुनती हैं। अंग्रेजों ने लोगों में ‘ फूट डालो और राज करो' की नीति के तहत जानबूझकर ऐसा किया। उन्होंनें इतिहास का काल विभाजन धर्म के आधार पर किया । प्राचीन काल को 'हिन्दू-काल' और मध्यकाल को 'मुस्लिम-काल' की संज्ञा दी तथा प्राचीन काल को 'स्वर्ण-काल' एवं मध्यकाल को 'अंधकार- काल' के रूप में चित्रित किया। उन्होंनें ऐसे प्रदर्शित किया कि उन्होंने हिन्दुओं को मुसलमानों की हजारों साल की गुलामी से मुक्ति दिलाई है। तथ्यों को इस तरह तोड़ मरोड़ कर पेश किया जिससे ऐसा लगता है कि हिन्दू और मुसलमान सदा से आपस में साम्प्रदायिक आधार पर लड़ते रहते थे। शासकों की लड़ाई को हिन्दू व मुसलमान की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत किया। जबकि शासक चाहे हिन्दू हो या मुसलमान वे अपने साम्राज्य के लिए ही लड़ते थे । इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है कि हिन्दू राजा मुसलमान राजा से लड़े; हिन्दू राजा दूसरे हिन्दू राजा से लड़े तो दूसरी ओर मुसलमान राजा भी मुसलमान राजा से लड़े। और हिन्दू राजाओं व मुसलमान राजाओं की प्रगाढ़ मित्रता के उदाहरण भी हैं । जब भारत में बाबर आया तो वह किसके विरुद्ध लड़ा था- इब्राहिम लोदी के । बाबर और इब्राहिम लोदी दोनों का धर्म इस्लाम था, इसके विपरीत राणा सांगा ने, जिसका धर्म हिन्दू था, बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आंमत्रित किया था। हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच के 76 / साम्प्रदायिकता