पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/८३

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बादशाह के अन्तर्गत जो रियासतें आती थीं उनमें लूट रोकनी थी और जब उसे कहा जाए तो दक्किन में अपनी सेवाएं प्रस्तुत करनी थी। इस समझौते के अनुसार शिवाजी के पुत्र शम्भा जी को 5000 का 'मनसब' दिया गया और शिवाजी के विश्वासपात्र सेनापति नेताजी के साथ दक्कन की 'सुबहदार' में शामिल होने दिया। इस समझौते में शिवाजी के पुत्र को जो मनसब दिया गया वह कम नहीं था, बल्कि वह राजपूताना का सबसे पुराना और विस्तृत घराना मेवाड़ के राणा के मनसब के बराबर था। शिवाजी को व्यक्तिगत रूप से दरबार में हाजिर होने से भी छूट दी गई थी, यह केवल मेवाड़ के राणा के पास थी, जो कि मुगलों का सबसे पुराना वफादार था । परन्तु शिवाजी इस मनसब से सतुष्ट नहीं थे, क्योंकि ऐसे सम्मान और मनसब अन्य मराठा सरदारों को दिए जा चुके थे, जिन्हें शिवाजी अपने से प्रतिष्ठा और सत्ता में अपने से कमतर समझते थे। यदि शिवाजी का मुसलमानों के साथ युद्ध होता तो शिवाजी की सेना में मुसलमान न होते, जबकि इसके विपरीत शिवाजी की सेना में बहुत अधिक पठान मुसलमान थे। उनका व्यक्तिगत सचिव मौलवी हैदर अली खान था, जो कि औरंगजेब और मुगल अधिकारियों के साथ शिवाजी के गोपनीय पत्रचार को देखता था । शिवाजी का मुख्य तोपची भी इब्राहिमगर्दी खान था । शिवाजी के सेनापति दौलतखान और सिद्दीक मिसरी थे, जो दोनों मुसलमान थे। शिवाजी को औरगंजेब ने आगरा की जेल में कैद कर लिया था, तो उनको वहां से निकालने वाला व्यक्ति मदारी मेहतर नाम का मुसलमान था। यदि शिवाजी के मन में मुसलमानों के प्रति अविश्वास होता या उसके मन में साम्प्रदायिक भावना होती या यह हिन्दू और मुसलमानों के बीच युद्ध होता तो वे अपनी सेना में और इतने महत्वपूर्ण पदों पर मुसलमानों को क्यों रखते? शिवाजी की सेना में और महत्वपूर्ण पदों पर मुसलमानों की नियुक्ति इस बात का सबूत है कि औरगंजेब और शिवाजी के बीच का युद्ध हिन्दू और मुसलमान के बीच युद्ध नहीं था बल्कि दो राजाओं के बीच था, जो अपनी अपनी सीमाएं बढ़ाने के लिए लड़ रहे थे । यदि शिवाजी हिन्दू राज्य कायम करने के लिए लड़ रहे होते तो ये मुसलमान भी उसकी सेना में क्यों रहते? इससे साफ पता चलता है कि मध्यकाल में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच कोई धार्मिक मतभेद नहीं था और हिन्दू और मुस्लिम राजा के बीच कलह था तो उसका कारण राजनीतिक था न कि धार्मिक । 'वे जब आगरे गए तो उनके साथ मदारी मेहतर नाम का मुसलमान युवक था। शिवाजी महाराज के अपने डेरे से निकल जाने के बाद अंत में वही उनके डेरे से बाहर निकला। अफजल खां से मिलने के 84 / साम्प्रदायिकता