सेवाओं की प्रशंसा की और उसके वेतन में वृद्धि की सिफारिश बादशाह से की । 3. औरगंजेब जब स्वयं शासक हुआ तो उसने हिन्दुओं को उच्च पदों पर नियुक्त किया और समय-समय पर उनकी पदोन्नति की। कुछ नाम ये हैं— राजा भीमसिंह (महाराणा जयसिंह का भाई), इन्द्रसिंह (महाराणा जयसिंह का भाई), राजा मानसिंह, राजा रूपसिंह का पुत्र इत्यादि । 4. औरंगजेब के शासन काल में हिन्दू मनसबदारों (अफसर) की संख्या सबसे अधिक थी । अकबर के समय में हिन्दू मनसबदारों की संख्या केवल 32 थी, जहांगीर के समय में यह 56 हो गई। औरगंजेब के समय में यह बढ़कर 104 हो गई। इससे स्पष्ट है कि वह प्रशासनिक कार्यों में धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता था । यह भी ध्यान देने लायक तथ्य है कि औरंगजेब के शासन में कुल मनसबदारों का 34 प्रतिशत हिन्दू थे, जो कि इससे पहले अधिक से अधिक 22 प्रतिशत थे और अकबर के समय में ये 12 प्रतिशत थे । इन आंकडों के बावजूद औंरगजेब को साम्प्रदायिक और हिन्दुओं से नफरत करने वाला मानना इतिहास के प्रति साम्प्रदायिक रवैया नहीं तो और क्या है ? । 5. औरगंजेब की सेना का सेनापति जयसिंह था, जो शिवाजी के विरुद्ध लड़ा था । औरगंजेब ने राजा जयसिह को मिर्जा की उपाधि दी थी। औरंगजेब की सेना में हिन्दू सैनिकों की संख्या मुसलमानों से कहीं अधिक थी । औरंगजेब और शिवाजी की लड़ाई कभी भी हिन्दू और मुसलमान की लड़ाई नहीं रही । यह मुगलों और मराठों की लड़ाई भी नहीं थी। बहुत से इज्जतदार मराठा सरदार हमेशा मुगलों की सेना में रहे। सिंद खेड के जाधव राव के अलावा कान्होजी शिर्के, नागोजी माने, आवाजी ढल, रामचंद्र और बहीर जी पंढेर आदि मराठा सरदार मुगलों के साथ रहे। शिवाजी शिवाजी के जीवन को आधार बनाकर साम्प्रदायिक शक्तियों ने यह साबित करने की कोशिश की कि मध्यकाल में हिन्दू मुस्लिम संघर्ष था और शिवाजी ने हिन्दू राज्य स्थापित करने के लिए संघर्ष किया। आरम्भ में शिवाजी और मुगलों के बीच कोई द्वन्द्व नहीं था बल्कि शिवाजी और औरगंजेब के बीच राजनीतिक समझौता हुआ । इस समझौते के अनुसार शिवाजी को बहुत अधिक धन और हैसियत के रूप में लाभ होना था। इसमें शिवाजी को 40 लाख 'हुनस' मिलने थे और इसके बदले में उसे मुगल शासको का वफादार रहना था और आज्ञाकारी होना था। मुगल साम्प्रदायिकता और इतिहास / 83