पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/९२

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उसका अन्दाजा इन पंक्तियों से लगाया जा सकता है। कितना बदनसीब है जफर दफ्न के लिए दो गज जमीं भी न मिली कूए यार में साम्प्रदायिक शक्तियां इतिहास के तथ्यों को इस तरह तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करती हैं जिससे कि वर्तमान में साम्प्रदायिक विद्वेष पनपे । साम्प्रदायिक दृष्टि से इतिहास का प्रस्तुतिकरण साम्प्रदायिक चेतना पैदा करने का कारगर माध्यम है और तथ्यों का सही प्रस्तुतिकरण व समग्र विश्लेषण इसकी काट है। भारतीय इतिहास ऐसी परम्पराओं से भरा पड़ा है जिसमें कि हिन्दू और मुसलमान के साझे जीवन की तस्वीरें हैं। एक ओर राजाओं का इतिहास है जो लड़ाई-मार-कुटाई से भरपूर है, दूसरी ओर आम लोगों का इतिहास है जिसमें साझे दुख और तकलीफें हैं और साझे रस - रंग व त्यौहार- उत्सव हैं । साम्प्रदायिक शक्तियों का मकसद है लोगों को आपस में लड़वाना और अपना उल्लू सीधा करना, इसलिए वे इतिहास की ऐसी घटनाओं को उठाते हैं जिससे कि फूट पैदा हो और यदि कोई उनको इस तरह की चीज नहीं मिलती तो वे इस तरह की बेबुनियादी कहानियों को गढ़ लेते हैं और उसका धुंआधार प्रचार करते हैं। इस प्रचार के नीचे तथ्यों को छुपा देते हैं । अत्यधिक प्रचार और बार-बार एक बात को सुनने के कारण लोग उन बातों को सच की तरह मानने लगते हैं, उसकी जांच-पड़ताल नहीं करते। इस तरह साम्प्रदायिक चेतना को धारण कर लेने से जब साम्प्रदायिक शक्तियां उन्माद का वातावरण निर्माण करती हैं तो लोग मुखर रूप से साम्प्रदायिक नजर आते हैं । संदर्भ : 1. कम्युनलिज्म इन इण्डिया : ए हिस्टोरिकल एंड इम्पीरकल स्टडी; असगर अली इंजीनियर; पृ. 12, विकास पब्लिशिंग हाउस दिल्ली; 1995 2. वही; पृ. 14 3. सांस्कृतिक एकता का गुलदस्ता; डॉ. इकबाल अहमद; पृ.-15 ; प्रकाशन विभाग, सूचना प्रसारण मंत्रलय, भारत सरकार, दिल्ली; 1993 4. छत्रपति शिवाजी : कारागार से सिंहासन ; गो. प. नेने; पृ.-41 ; राजपाल एण्ड संस, दिल्ली; 1974 5. छत्रपति शिवाजी: कारागार से सिंहासन; गो. प. नेने; पृ. 93; राजपाल एण्ड संस, दिल्ली; 1974 6. संस्कृति के चार अध्याय; रामधारी सिंह दिनकर; पृ. 346; लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद; 1994 साम्प्रदायिकता और इतिहास / 93