पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/९१

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अन्तर्दृष्टि' लेख में लिखा कि 'टीपू सुल्तान ने कितने ही अवसरों पर, शृंगेरी के शंकराचार्य से भगवान से प्रार्थना करने के लिए अनुरोध किया। एक बार जब उसके कल्याण के लिए शंकराचार्य के पथ-दर्शन में सहस्र चण्डी जप हो रहा था, तब उसने बड़ी प्रसन्नता प्रकट की थी । ” श्री रंगनाथ का प्रसिद्ध मंदिर उसके महल से केवल 100 गज की दूरी पर था। बहादुरशाह जफर बहादुरशाह जफर अन्तिम मुगल सम्राट थे जब 1857 में भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया । इस लड़ाई में हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर भाग लिया। दोनों धर्मों के लोग पूरी बहादुरी से और कंधे से कंधा मिलाकर लड़े । हिन्दू-मुस्लिम एकता की यह अनुपम मिसाल है। लोगों की शक्ति को अंग्रेजों ने पहचान लिया था, इसके बाद ही अंग्रेजों ने भारतीय जनता में फूट डालने के लिए धर्म के आधार पर उनको भड़काना शुरू किया। इतिहास को इस तरह से प्रस्तुत करना शुरू किया जिससे कि वैमनस्य बढ़े । इतिहास को साम्प्रदायिक नजरिए से पेश करने के लिए अंग्रेजों ने विशेष रूप से इतिहासकारों को बुलाया, जिन्होंने तथ्यों को इस ढंग से तोड़-मरोड़ कर पेश किया कि पूरा इतिहास ऐसे लगने लगा जैसे कि यह हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष का दौर रहा हो, जबकि ऐसा नहीं है । 1857 का ही उदाहरण लें जब दोनों धर्मों के लोग इकट्ठे मिलकर लड़े । इसमें सैनिक भी शामिल थे और विभिन्न रियासतों के राजा भी थे, जिनके राज्य को अंग्रेजों ने किसी न किसी बहाने से अपने राज्य में मिला लिया था। इसमें मंगल पांडे भी शामिल थे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भी शामिल थीं, तात्या टोपे भी शामिल थे । इन सब देशभक्तों ने मिलकर अपना नेता बहादुरशाह जफर को चुना। इन सब वीरों को बहादुरशाह उपयुक्त व्यक्ति नजर आया। इनको बहादुरशाह की वफादारी व देशभक्ति पर पूरा भरोसा था। बहादुरशाह जफर में भारत देश के प्रति भक्ति की भावना कूट- कूट कर भरी हुई थी । अपने जीवन के आखिरी दम तक उन्होंने इसके लिए काम किया। बहादुरशाह जफर बहुत अच्छे शायर थे उन्होंने लिखा : गाजियों में ब रहेगी जब तलक ईमान की बू तख्त लंदन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की 17° भारत की मिट्टी से इतना प्यार करते थे कि जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों ने उनके जवान बेटों के सिर काट कर उनके सामने पेश किए तो उन्होंने उफ् तक नहीं की। उनको इस देश से कितना प्यार था 92 / साम्प्रदायिकता