पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/९४

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साम्प्रदायिकता और मिथ्या प्रचार साम्प्रदायिक शक्तियां एक समुदाय के बारे में घृणा व नफरत पैदा करने के लिए उसके बारे में तरह तरह के झूठ प्रचारित करती हैं। देश की सारी समस्याओं का जिम्मेदार एक वर्ग को ही ठहरा देती हैं। मुसलमानों के बारे में भी हिन्दू साम्प्रदायिक तत्व ऐसा ही प्रचार करते हैं। वे बात को इस तरह से उठाते हैं कि समस्या से उनका कुछ लेना देना नहीं होता लेकिन इसके बहाने वे अपना साम्प्रदायिक स्वार्थ साध लेते हैं । मुसलमान चार शादियां करते हैं और जनसंख्या में वृद्धि करते हैं । साम्प्रदायिक शक्तियों का कहना है कि मुसलमानों चार चार शादियां करने की छूट है। वे चार शादियां करते हैं और जनसंख्या में वृद्धि करते हैं, और एक दिन वे हिन्दुओं से अधिक हो जायेंगे। यह बात तथ्यपरक नहीं है, लेकिन इसका इतना प्रचार किया गया है कि आम लोगों की चेतना का हिस्सा बन गई है। इस बात में कितनी सच्चाई है इस बात की जांच पड़ताल करना जरूरी है। 1. भारत में 1000 पुरुषों के पीछे 950 से कम महिलाएं हैं। मुसलमानों में भी स्त्री-पुरुष अनुपात लगभग यही है। इसलिए प्रत्येक आदमी चार चार शादियां नहीं कर सकता, क्योंकि इसके लिए तो एक हजार पुरुषों के पीछे चार हजार औरतें होनी जरूरी हैं। यदि सभी मुसलमान चार चार शादियां करने लगें तो केवल 25 प्रतिशत की शादियां हो पाएंगी और बाकी को बिना शादी के ही रहना पड़ेगा। 2. शादी से जनसंख्या बढ़ोत्तरी का कोई सम्बन्ध नहीं है। जनसंख्या वृद्धि औरतों की संख्या पर निर्भर करती है, न कि शादियों पर । एक औरत से 9 महीने में एक (अपवाद को छोड़कर) बच्चा पैदा होता है। चाहे चार पुरुषों की एक पत्नी हो या फिर एक पुरुष की चार पलियां हों । 3. यदि जनसंख्या इसी गति से बढ़ती रहे तो मुसलमानों की जनसंख्या को हिन्दुओं के बराबर आने में कम से कम चार हजार वर्ष तो लगेंगे ही। जब भारत आजाद हुआ तो मुसलमानों की जनसंख्या 11 प्रतिशत थी और अब 12 प्रतिशत है । साम्प्रदायिकता और मिथ्या प्रचार / 95