पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/११३

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स्तर पर ले आने , विभिन्न देशों की आर्थिक तथा रहन-सहन की परिस्थितियों को समान स्तर पर ले आने की प्रक्रिया कितनी ही प्रबल क्यों न रही हो, पर अब भी काफ़ी अंतर बाक़ी है; और जिन छ: ताक़तों का उल्लेख किया गया है उनमें हम देखते हैं कि सबसे पहले तो अल्पवयस्क पूंजीवादी देश (अमरीका, जर्मनी तथा जापान) हैं जिनकी प्रगति असाधारण तीव्र गति से हुई है ; दूसरे ऐसे देश हैं जिनका पूंजीवादी विकास पुराना है (फ्रांस तथा ग्रेट ब्रिटेन), जिनकी प्रगति इधर कुछ समय से उपरोक्त देशों की तुलना में बहुत धीमी रही है, और तीसरे हम एक ऐसा देश देखते हैं जो आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक पिछड़ा हुआ है (रूस), जहां आधुनिक पूंजीवादी साम्राज्यवाद , जिसे कहना चाहिए , पूंजीवाद से पहले के संबंधों के एक बहुत ही घने जाल में उलझा हुआ है।

बड़ी ताक़तों के उपनिवेशों के साथ ही हमने छोटे राज्यों के छोटे उपनिवेशों को रखा है जो, एक तरह से, उपनिवेशों के उस "पुनर्विभाजन" का आगामी लक्ष्य बनेंगे जो संभव है, और कदाचित होगा भी। इनमें से अधिकांश छोटे राज्य अपने उपनिवेशों पर अपना आधिपत्य केवल इसलिए बनाये रख पाते हैं कि बड़ी ताक़तों के बीच हितों की टक्कर होती है, उनमें संघर्ष होते हैं, आदि, जिनके कारण वे लूट के माल के बंटवारे के बारे में आपस में किसी समझौते पर नहीं पहुंच पातीं। अर्द्ध-औपनिवेशिक देश उन संक्रमणकालीन रूपों का एक उदाहरण हैं जो प्रकृति तथा समाज के सभी क्षेत्रों में पाये जाते हैं। सभी आर्थिक तथा सभी अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में वित्तीय पूंजी इतनी बड़ी , बल्कि कहा जा सकता है, इतनी निर्णायक शक्ति है कि वह उन राज्यों को भी, जो पूर्णतम राजनीतिक स्वतंत्रता का उपभोग करते हैं, अपने अधीन कर लेने की क्षमता रखती है और आधीन कर भी लेती है। हम शीघ्र ही इसके उदाहरण देखेंगे। ज़ाहिर है, वित्तीय पूंजी ऐसी पराधीनता को सबसे अधिक “सुविधाजनक" पाती है और उसी से सबसे

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