पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/११८

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जाता है उनके कारण भी उपनिवेशों की विजय को प्रोत्साहन मिलता है, क्योंकि उपनिवेशों के बाज़ार में प्रतियोगिता को दूर करने , ठेके मिलना निश्चित बनाने, आवश्यक "संबंध" स्थापित करने आदि के लिए इजारेदारी तरीकों को इस्तेमाल करना ज्यादा आसान होता है (और कभी-कभी तो केवल इन्हीं तरीकों को इस्तेमाल किया जा सकता है ) ।

वित्तीय पूंजी की नींव पर जो गैर-आर्थिक ऊपरी ढांचा तैयार होता है, अर्थात् उसकी राजनीति तथा उसकी विचारधारा, उससे भी औपनिवेशिक विजय की चेष्टा को प्रोत्साहन मिलता है। जैसा कि हिल्फ़र्डिंग ने बिल्कुल सही कहा है "वित्तीय पूंजी स्वतंत्रता नहीं बल्कि प्रभुत्व चाहती है"। और एक फ्रांसीसी पूंजीवादी लेखक ने मानो सेसील रोड्स के ऊपर उद्धृत किये गये विचारों*[१] को विकसित करते हुए तथा उन्हें पूर्ति प्रदान करते हुए लिखा है कि आधुनिक औपनिवेशिक नीति के आर्थिक कारणों के साथ सामाजिक कारण भी जोड़ दिये जाने चाहिए: "जीवन की बढ़ती हुई जटिलताओं के कारण और उन कठिनाइयों के कारण जिनका बोझ केवल आम मजदूरों पर ही नहीं बल्कि मध्यम वर्गों पर भी पड़ता है, पुरानी सभ्यता के सभी देशों में 'अधीरता, झुंझलाहट तथा घृणा बढ़ती जा रही है और ये भावनाएं सार्वजनिक शान्ति के लिए एक खतरा बनती जा रही हैं ; निश्चित वर्ग माध्यम से जो शक्ति प्रक्षेपित हो रही है उसे विदेशों में किसी काम पर लगा दिया जाना चाहिए ताकि अपने देश में विस्फोट न होने पाये'।"**[२]


  1. * देखिये इस पुस्तक के पृष्ठ १०९-११० । - सं०
  2. ** Wahi, «La France aux colonies» (उपनिवेशों में फ्रांस - अनु०), Henri Russier द्वारा उद्धृत, «Le Partage de l'Océanie» (ओशियाना का विभाजन - अनु०), पेरिस १९०५, पृष्ठ १६५ ।

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