कच्चे माल को तैयार करने , तथा उसका सदुपयोग करने के लिए नये तरीक़ों का पता लगाने , आदि के बारे में भी सच है। यही कारण है कि वित्तीय पूंजी अनिवार्य रूप से अपने आर्थिक क्षेत्र को, बल्कि अपने पूरे क्षेत्र को विस्तृत बनाने की कोशिश करती है। जिस प्रकार अपने "संभावित" ( वर्तमान नहीं ) मुनाफ़ों को और इजारेदारी के भावी परिणामों को दृष्टिगत रखते हुए ट्रस्ट अपनी पूंजी को अपनी सम्पत्ति के मूल्य के दुगने या तिगुने के बराबर आंकते हैं, उसी प्रकार कच्चे माल के निहित स्रोतों को दृष्टिगत रखते हुए और इस भय से कि अविभाजित इलाक़ों के अंतिम छोटे-छोटे टुकड़ों के लिए, या जिन इलाकों का विभाजन हो भी चुका है उनके पुनर्विभाजन के लिए जो भीषण संघर्ष हो रहा है उसमें वह कहीं पीछे न रह जाये, वित्तीय पूंजी की आम कोशिश हर जगह हर प्रकार की यथासंभव ज्यादा से ज्यादा ज़मीन पर, हर उपाय से, कब्ज़ा कर लेने की होती है।
ब्रिटिश पूंजीपति अपने उपनिवेश मिस्र में कपास की खेती को विस्तृत करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं (१९०४ में वहां कुल २३,००,००० हेक्टेयर भूमि पर खेती होती थी, जिसमें से ६,००,००० हेक्टेयर पर, अर्थात् चौथाई से अधिक भूमि पर, कपास की खेती होती थी); अपने उपनिवेश तुर्किस्तान में रूसी भी यही कर रहे हैं क्योंकि इस प्रकार वे इस दृष्टि से ज्यादा अच्छी स्थिति में होंगे कि अपने विदेशी प्रतियोगियों को परास्त कर सकें, कच्चे माल के स्रोतों पर इजारेदारी कायम कर सकें और कम खर्च पर काम करनेवाला तथा अधिक मुनाफ़ा देनेवाला कपड़ा-उद्योग का एक ऐसा ट्रस्ट कायम कर सकें जिसमें कपास के उत्पादन तथा कारखानों में उससे विभिन्न माल तैयार करने से संबंधित सभी प्रक्रियाएं मालिकों के एक ही गुट के हाथों में “एकत्रित" तथा संकेंद्रित हो जायें।
पूंजी का निर्यात करने में जिन हितों की पूर्ति को लक्ष्य बनाया
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