पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१३६

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स्तर बहुत ऊंचा है और पूर्वी एशिया में है ही नहीं। चीन का विभाजन अभी आरंभ ही हो रहा है और उस पर क़ब्जा जमाने के लिए जापान, संयुक्त राज्य अमरीका आदि का पारस्परिक संघर्ष निरंतर उग्रतर रूप धारण करता जा रहा है।

इस वास्तविकता की तुलना - आर्थिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों की अत्यधिक विषमता, विभिन्न देशों के विकास की रफ्तार में अत्यधिक अंतर, आदि, और साम्राज्यवादी राज्यों के बीच भीषण संघर्ष- “शांतिपूर्ण” अति-साम्राज्यवाद के बारे में कौत्स्की की मूर्खतापूर्ण कपोल- कल्पना के साथ कीजिये। क्या यह एक भयभीत कूपमंडूक की क्रूर वास्तविकता से छुपने की प्रतिक्रियावादी कोशिश नहीं है? जिन अन्तर्राष्ट्रीय कार्टेलों को कौत्स्की “अति-साम्राज्यवाद” के अंकुर समझते हैं ( उसी प्रकार जैसे हम प्रयोगशाला में गोलियों के उत्पादन को अति- कृषि का अंकुर कह “सकते” हैं ), क्या वे दुनिया के विभाजन तथा पुनर्विभाजन का , शांतिपूर्ण विभाजन से अशान्तिपूर्ण विभाजन में और अशांतिपूर्ण विभाजन से शांतिपूर्ण विभाजन में संक्रमण का उदाहरण नहीं हैं ? क्या अमरीकी तथा दूसरी वित्तीय पूंजी, जिसने, उदाहरण के लिए, अन्तर्राष्ट्रीय रेल सिंडीकेट में, या अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक जहाजरानी ट्रस्ट में जर्मनी को भी शरीक करके सारी दुनिया को शांतिपूर्वक बांट लिया था, इस समय शक्तियों के एक नये संबंध के आधार पर, जिसे सर्वथा अ-शांतिपूर्ण तरीकों से बदला जा रहा है, दुनिया का पुनर्विभाजन करने में व्यस्त नहीं है ?

वित्तीय पूंजी तथा ट्रस्ट विश्व अर्थतंत्र के विभिन्न भागों के विकास की गति के अंतर को कम नहीं करते, बल्कि बढ़ा देते हैं। एक बार शक्तियों का पारस्परिक संबंध बदल जाने पर पूंजीवाद के अंतर्गत इन विरोधों को हल करने के लिए बल-प्रयोग के अतिरिक्त और क्या उपाय हो सकता

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