पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१४३

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ताक़त उसे अपने क़र्ज़दारों के रोष से सुरक्षित रखती है।"*[१] सरटोरियस वान वाल्टर्सगाजे़न ने अपनी पुस्तक "विदेशों में पूंजी लगाने की राष्ट्रीय आर्थिक पद्धति" में एक "सूदखोर राज्य" की सबसे अच्छी मिसाल के रूप में हालैंड का उल्लेख किया है और यह बताया है कि ग्रेट ब्रिटेन तथा फ्रांस भी अब वैसे ही बनते जा रहे हैं।**[२] शिल्दर का यह मत है कि पांच औद्योगिक राज्य "निश्चित रूप से बहुत ही प्रमुख ऋण देनेवाले देश" बन गये हैं: ग्रेट ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, वेलजियम तथा स्विट्ज़रलैंड। उन्होंने इस सूची में हालैंड को केवल इसलिए शामिल नहीं किया है कि वह "औद्योगिक दृष्टि से बहुत कम विकसित"***[३] है। संयुक्त राज्य अमरीका का ऋण केवल अमरीकी देशों पर है।

शुल्जे-गैवर्नित्ज़ कहते हैं, "ग्रेट ब्रिटेन धीरे-धीरे एक औद्योगिक राज्य से एक ऋण देनेवाला राज्य बनता जा रहा है। औद्योगिक उत्पादन तथा कारखानों के तैयार माल के निर्यात की कुल मात्रा में वृद्धि के बावजूद सूद तथा डिवीडेंड से, प्रतिभूतियां जारी करने से, कमीशन तथा सट्टेबाज़ी से होनेवाली आय का सापेक्ष महत्व पूरे राष्ट्रीय अर्थतंत्र में बढ़ता जा रहा है। मेरी राय में यही बात है जो साम्राज्यवाद की उन्नति का आर्थिक आधार है। क़र्ज़दार के साथ क़र्ज़ देनेवाले का संबंध खरीदार के साथ माल बेचनेवाले के संबंध की अपेक्षा अधिक दृढ़ होता है।"****[४] जर्मनी के बारे में अ॰ लैंसवर्ग ने, जो बर्लिन की


  1. * Schulze-Gaevernitz, «Britischer Imperialismus», पृष्ठ ३२० तथा उसके बाद के पृष्ठ।
  2. ** Sart, von Waltershausen, «Das volkswirtschaftliche System, etc.», बर्लिन, १९०७ , खण्ड ४।
  3. *** शिल्दर, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक, पृष्ठ ३९३।
  4. ***** Schulze-Gaevernitz, उपरोक्त पुस्तक , पृष्ठ १२२।

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