तथा राजनीति में पूंजीवादी इजारेदारियों को प्रथम स्थान प्राप्त है; दुनिया का बंटवारा पूरा हो चुका है; दूसरी ओर हम यह देखते हैं कि ग्रेट ब्रिटेन की अविभक्त इजारेदारी के बजाय अब कुछ साम्राज्यवादी ताक़तें इस इजारेदारी में हिस्सा बंटाने के अधिकार के लिए कोशिश कर रही हैं और यह संघर्ष बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ के पूरे काल की लाक्षणिकता है। अब अवसरवाद कई दशाब्दियों तक एक देश के मज़दूर वर्ग के आंदोलन में पूर्णतः विजयी नहीं रह सकता, जैसा कि वह उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इंगलैंड में था, परन्तु कई देशों में वह पक चुका है, आवश्यकता से अधिक पक चुका है और सड़ गया है और "सामाजिक-अंधराष्ट्रवाद" के रूप में पूंजीवादी नीति के साथ-घुलमिलकर बिल्कुल एक हो गया है।*[१]
९. साम्राज्यवाद की आलोचना
व्यापक अर्थ में साम्राज्यवाद की आलोचना से हमारा अभिप्राय यह है कि समाज के विभिन्न वर्ग अपनी आम विचारधारा के प्रसंग में साम्राज्यवादी नीति की ओर क्या रवैया अपनाते हैं।
एक ओर तो थोड़े-से लोगों के हाथों में संकेंद्रित वित्तीय पूंजी का अपार विस्तार और उसके द्वारा संबंधों तथा सम्पर्कों के असाधारण रूप से विस्तृत तथा घने जाल की रचना के कारण, जो केवल छोटे और
- ↑ * रूसी सामाजिक-अंधराष्ट्रवाद भी, उसका खुला रूप भी जिसका प्रतिनिधित्व पोत्रेसोव, छेन्केली, मास्लोव आदि जैसे लोग करते हैं और उसका छुपा-ढका रूप भी, जिसका प्रतिनिधित्व छेईद्जे, स्कोबेलेव, अक्सेलरोद, मारतोव आदि जैसे लोग करते हैं, अवसरवाद की रूसी किस्म से, अर्थात् विसर्जनवाद से, निकला था।
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