"और ज्यादा" पीछे की ओर जाता है, "वैज्ञानिक" होने का दावा करने की आड़ में वह साम्राज्यवाद के तलुए सहलाने की ओर जाता है। सचमुच कमाल का "तर्क" है!
ये सवाल कि क्या साम्राज्यवाद के आधार में सुधार करना संभव है, क्या उन विरोधों को, जिन्हें वह जन्म देता है, और भी उग्र तथा गहरा बनाने की ओर आगे बढ़ना चाहिए या इन विरोधों को शांत करने की दिशा में पीछे हटना चाहिए, साम्राज्यवाद की आलोचना में बुनियादी प्रश्न हैं। चूंकि हर क्षेत्र में प्रतिक्रिया और वित्तीय अल्पतंत्र द्वारा किये जानेवाले उत्पीड़न के फलस्वरूप राष्ट्रीय उत्पीड़न में वृद्धि और खुली प्रतियोगिता का अंत साम्राज्यवाद की विशिष्ट राजनीतिक विशेषताएं हैं इसलिए बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लगभग सभी साम्राज्यवादी देशों में साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ निम्न-पूंजीवादी जनवादी विरोध प्रारंभ हुआ। और कौत्स्की का तथा व्यापक अंतर्राष्ट्रीय कौत्स्कीवादी विचारधारा का मार्क्सवाद का पक्ष छोड़कर भाग जाना ठीक इसी बात में व्यक्त होता है कि कौत्स्की ने न केवल इस निम्न-पूंजीवादी, सुधारवादी विरोध का, जो अपने आर्थिक आधार की दृष्टि से वास्तव में प्रतिक्रियावादी है, विरोध करने का कष्ट नहीं उठाया, न केवल वह इस विरोध का विरोध करने में असमर्थ रहे, बल्कि व्यवहार में वह उसमें विलीन हो गये।
स्पेन के विरुद्ध १८९८ में जो साम्राज्यवादी युद्ध चलाया गया था उसपर संयुक्त राज्य अमरीका में "साम्राज्य-विरोधियों" का विरोध भड़क उठा, जो पूंजीवादी जनवाद के अंतिम अवशेष थे, उन्होंने इस युद्ध को "अपराधपूर्ण" घोषित किया, विदेशी इलाक़ों पर आधिपत्य करके उन्हें अपने राज्य में मिला लेने को संविधान का उल्लंघन ठहराया, और वहां के फ़िलिपाइन के मूलनिवासियों के नेता अग्वीनाल्दो के साथ जो व्यवहार किया गया था (अमरीकियों ने पहले उन्हें उनके
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