व्यापार की अपेक्षा ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है तो इससे केवल यही सिद्ध होता है कि जर्मन साम्राज्यवाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद की तुलना में अधिक अल्पवयस्क, अधिक बलवान तथा अधिक सुसंगठित है, वह उससे श्रेष्ठतर है, परन्तु इससे स्वतंत्र व्यापार की "श्रेष्ठता" हरगिज़ सिद्ध नहीं होती क्योंकि यह स्वतंत्र व्यापार और संरक्षण तथा औपनिवेशिक निर्भरता की नहीं बल्कि दो प्रतिद्वंद्वी साम्राज्यवादों की, दो इजारेदारियों की, वित्तीय पूंजी के दो दलों की लड़ाई है। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के मुक़ाबले में जर्मन साम्राज्यवाद की श्रेष्ठता औपनिवेशिक हदबंदियों या संरक्षणात्मक महसूलों की दीवार से अधिक शक्तिशाली है: इस बात को स्वतंत्र व्यापार तथा "शांतिपूर्ण जनवाद" के पक्ष में एक "दलील" के रूप में इस्तेमाल करना बहुत ही घटिया बात है, इसका मतलब है साम्राज्यवाद की मूलभूत विशेषताओं तथा लाक्षणिकताओं को भूल जाना, मार्क्सवाद का स्थान निम्न-पूंजीवादी सुधारवाद को दे देना।
यह बात दिलचस्प है कि अ॰ लैंसबर्ग जैसा पूंजीवादी अर्थशास्त्री भी, जिसकी साम्राज्यवाद की आलोचना उतनी ही निम्न-पूंजीवादी ढंग की है जितनी कौत्स्की की आलोचना, व्यापार-संबंधी आंकड़ों के अधिक वैज्ञानिक अध्ययन के ज्यादा निकट पहुंच गया। उन्होंने अललटप्प किसी एक देश को और केवल एक उपनिवेश को चुनकर उसकी तुलना अन्य देशों के साथ नहीं की; उन्होंने एक साम्राज्यवादी देश के निर्यात व्यापार के बारे में इस प्रकार छानबीन की: (१) उन देशों के साथ उसका व्यापार जो वित्तीय दृष्टि से उसपर निर्भर हैं, जो उससे पैसा उधार लेते हैं; और (२) उन देशों के साथ उसका व्यापार जो वित्तीय दृष्टि से स्वतंत्र हैं। उन्हें ये आंकड़े प्राप्त हुए: