को जन्म देता है? और इजारेदारियों का जन्म हो चुका है—ठीक इसी खुली प्रतियोगिता में से! यदि इजारेदारियां अब प्रगति की रफ़्तार को धीमा करने लगी हैं तो यह खुली प्रतियोगिता के पक्ष में कोई दलील नहीं है, जो इजारेदारियों को पैदा कर चुकने के बाद अब असंभव हो गयी है।
हम कौत्स्की की दलील को चाहे जिस तरफ़ से उलट-पुलट कर देखें, हम उसमें प्रतिक्रिया तथा पूंजीवादी सुधारवाद के अतिरिक्त और कुछ नहीं पायेंगे।
यदि हम इस दलील को ठीक भी कर दें और स्पेक्तातोर की तरह कहें कि इंगलैंड के साथ ब्रिटिश उपनिवेशों का व्यापार और देशों के साथ उनके व्यापार की तुलना में अब ज्यादा धीमी रफ़्तार से बढ़ रहा है , तब भी कौत्स्की का बचाव नहीं होता, क्योंकि ग्रेट ब्रिटेन को इजारेदारी ही, साम्राज्यवाद ही नीचा दिखा रहा है, अंतर केवल यह है कि वह इजारेदारी और साम्राज्यवाद दूसरे देश के (अमरीका, जर्मनी) हैं। यह बात विदित है कि कार्टेलों ने एक नये तथा अनोखे क़िस्म के संरक्षणात्मक महसूलों को जन्म दिया है, अर्थात् जो माल निर्यात के लिए उपयुक्त होता है उसे संरक्षण दिया जाता है (एंगेल्स ने "पूंजी" के तीसरे खंड में इस बात का उल्लेख किया है)। यह भी विदित है कि कार्टेलों की तथा वित्तीय पूंजी की अपनी एक निराली पद्धति होती है, "बहुत ही सस्ते दामों पर माल का निर्यात करना ,"जिसे अंग्रेज "माल से पाट देना" कहते हैं: अपने देश में तो कार्टेल चीज़ों को बहुत ऊंची इजारेदारी कीमतों पर बेचता है, लेकिन उसी चीज़ को विदेशों में वह अपने प्रतियोगियों का पत्ता काटने, स्वयं अपना उत्पादन अधिकतम बढ़ाने आदि के लिए बहुत ही कम क़ीमतों पर बेचता है। यदि ब्रिटिश उपनिवेशों के साथ जर्मनी का व्यापार ग्रेट ब्रिटेन के
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