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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१७

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मिलती है : कुल ३२,६५,६२३ कारखानों में से बड़े पैमाने के कारखानों की संख्या ३०,५८८ यानी ०.६ फ़ीसदी है। इन कारखानों में, तमाम कारखानों में काम करनेवाले कुल १,४४,००,००० मजदूरों में से ५७,००,००० यानी ३६.४ फ़ीसदी मजदूर काम करते हैं; ये कारखाने कुल ८८,००,००० अश्वशक्ति भाप में से ६६,००,००० अश्वशक्ति , यानी ७५.३ फ़ीसदी भाप इस्तेमाल करते हैं; और कुल १५,००,००० किलोवाट बिजली में से १२,००,००० किलोवाट, यानी ७७.२ फ़ीसदी बिजली इस्तेमाल करते हैं।

कुल कारखानों का एक फ़ीसदी से भी कम हिस्सा भाप और बिजली की ताक़त का तीन-चौथाई से भी अधिक भाग इस्तेमाल करता है ! उनतीस लाख सत्तर हज़ार छोटे कारखाने (जिनमें पांच मजदूर तक काम करते हैं), जो कुल कारखानों की संख्या का ६१ फ़ीसदी हिस्सा हैं, भाप और बिजली की कुल शक्ति का केवल ७ फ़ीसदी भाग इस्तेमाल करते हैं! कुछ हज़ार बड़े पैमाने के कारखाने सब कुछ हैं, लाखों छोटे-छोटे कारखाने कुछ भी नहीं हैं।

१९०७ में जर्मनी में ५८६ ऐसे प्रौद्योगिक कारखाने थे जिनमें से प्रत्येक में एक हजार से अधिक मजदूर काम करते थे, अर्थात् उनमें उद्योगों में काम करनेवाले मजदूरों की कुल संख्या का दसवां हिस्सा (१३,८०,०००) काम करता था और भाप और बिजली की कुल ताक़त का करीब-करीब एक-तिहाई (३२ फ़ीसदी) हिस्सा इन कारखानों में इस्तेमाल होता था। *[] जैसा कि हम आगे देखेंगे, द्रव्य पूंजी और बैंक इन मुट्ठी-भर सबसे बड़े कारखानों की ताक़त को और भी ज़बरदस्त बना देते हैं। यह बात उसके

बिल्कुल शब्दशः अर्थ में कही जा रही है, मतलब यह कि लाखों छोटे-छोटे,


  1. *आंकड़े Annalen des deutschen Reichs, 1911, Zahn से लिये गये हैं।
2-1838
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