पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१६

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दो लेखकों द्वारा प्रस्तुत किये गये, बल्कि यह कहना अधिक सही होगा कि उपरोक्त दो लेखकों द्वारा सार-रूप में प्रतिपादित विचारों से बहुत आगे नहीं जाता।

बाद में, हम संक्षेप में और जितनी सरलता से हो सकेगा साम्राज्यवाद की मुख्य आर्थिक विशेषताओं के आपसी संबंधों को दिखलाने की कोशिश करेंगे। इस प्रश्न के गैर-आर्थिक पहलुओं पर हम विचार न कर सकेंगे, वे कितने ही विचारणीय क्यों न हों। हमने तमाम साहित्य-सम्बंधी उल्लेखों और दूसरी टिप्पणियों को इस पुस्तिका के अंत में दे दिया है, क्योंकि शायद सभी पाठकों को उनमें दिलचस्पी न होगी।

१. उत्पादन का संकेंद्रण और इजारेदारियां

उद्योग-धंधों की जबरदस्त बढ़ती और उत्पादन के बड़े से बड़े कारबारों में संकेंद्रण की विलक्षण रूप से तेज़ प्रक्रिया पूंजीवाद की एक बहुत ही महत्वपूर्ण विशेषता है। उत्पादन की आधुनिक अंक-गणनाओं से हमें इस प्रक्रिया के बारे में बहुत पूरे और ठीक-ठीक तथ्य मिल जाते हैं।

उदाहरण के लिए, जर्मनी में हर १,००० प्रौद्योगिक कारखानों में, बड़े कारखानों की संख्या, अर्थात् जिनमें ५० से अधिक मजदूर काम करते हैं, १८८२ में तीन, १८६५ में छः और १९०७ में नौ थी। इसी भांति काम में लगे हुए हर सौ मजदूरों के पीछे इस कोटि के कारखानों में क्रमशः २२, ३० और ३७ मजदूर काम करते थे। किन्तु उत्पादन का संकेंद्रण मजदूरों के संकेंद्रण से ज्यादा तेज होता है, क्योंकि बड़े कारखानों में श्रम कहीं ज्यादा उत्पादनशील होता है। यह बात भाप के इंजनों और बिजली के मोटरों के बारे में जो आंकड़े मिलते हैं उनसे साफ़ हो जाती है। यदि हम इस चीज़ को लें, जिसे जर्मनी में मोटे तौर पर उद्योग कहते हैं, अर्थात् जिसमें व्यापार, यातायात आदि शामिल हैं, तो हमें यह तस्वीर

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