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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१७०

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करने या उन्हें बढ़ाने के उद्देश्य से एक-दूसरे के खिलाफ़ गंठजोड़ कर लेते हैं; ये गंठजोड़ "अंतर-साम्राज्यवादी" अथवा "अति-साम्राज्यवादी" गंठजोड़ होंगे। मान लीजिये कि सभी साम्राज्यवादी देश एशिया के इन भागों का "शांतिपूर्वक" बंटवारा कर लेने के लिए आपस में गंठजोड़ कर लेते हैं; यह गंठजोड़ "अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर एकबद्ध वित्तीय पूंजी" का गंठजोड़ होगा। बीसवीं शताब्दी के इतिहास में इस प्रकार के गंठजोड़ों के वास्तविक उदाहरण मिलते हैं, जैसे चीन की ओर बड़ी ताक़तों का रवैया। हम पूछते हैं कि यदि हम इस बात को मान भी लें कि पूंजीवादी व्यवस्था ज्यों की त्यों बनी रहेगी—और कौत्स्की ने इस बात को मान लिया है—तो क्या इस बात की "कल्पना की जा सकती" है कि इस प्रकार के गंठजोड़ अस्थायी नहीं होंगे, कि वे हर प्रकार के टकरावों, झगड़ों तथा संघर्षों को खत्म कर देंगे?

इस प्रश्न को स्पष्ट रूप से पेश कर देना ही इस बात के लिए काफ़ी है कि उसका नहीं के अलावा और कोई उत्तर नहीं हो सकता, क्योंकि पूंजीवाद के अंतर्गत प्रभाव-क्षेत्रों, हितों, उपनिवेशों आदि के बंटवारे के लिए इस बंटवारे में भाग लेनेवालों की ताक़त, उनकी आम आर्थिक, वित्तीय, सैनिक ताक़त का हिसाब लगाने के अतिरिक्त और किसी दूसरे आधार की कल्पना नहीं की जा सकती। और विभाजन में भाग लेनेवालों की ताक़त में समान रूप से परिवर्तन नहीं होता, क्योंकि पूंजीवाद के अंतर्गत विभिन्न कारखानों, ट्रस्टों, उद्योगों की शाखाओं या देशों का समान विकास असंभव है। अबसे पचास वर्ष पहले इंगलैंड की उस समय की ताक़त की तुलना में जर्मनी अपनी पूंजीवादी ताक़त की दृष्टि से एक बहुत ही कमज़ोर तथा नगण्य देश था; रूस की तुलना में जापान की यही हालत थी। क्या इस बात की "कल्पना की जा सकती" है कि दस या बीस वर्षों में साम्राज्यवादी ताक़तों की आपेक्षित शक्ति में कोई परिवर्तन हुआ होता? कदापि नहीं।

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