चलनेवालों के लिए बल्कि मोटर पर बैठे हुए लोगों के लिए भी खतरा पैदा हो गया है। और फिर वित्तीय पूंजी को भी, जो इतने असाधारण वेग से बढ़ी है, उपनिवेशों पर अधिक "शांतिमय" स्वामित्व की हालत में पहुंच जाने में कोई आनाकानी नहीं है, जिन उपनिवेशों को अधिक समृद्ध राष्ट्रों से छीनना पड़ेगा और वह भी केवल शांतिपूर्ण तरीकों से नहीं; उसकी इस तत्परता का कारण यही है कि वह इतनी तेज़ी से बढ़ी है। संयुक्त राज्य अमरीका में पिछले कुछ दशकों में आर्थिक विकास जर्मनी से भी ज्यादा तेज़ी से हुआ है, और यही कारण है कि आधुनिक अमरीकी पूंजीवाद की परजीवी विशेषताएं विशेष रूप से उभरकर सामने आयी हैं। दूसरी ओर, मिसाल के लिए, गणतांत्रिक अमरीकी पूंजीपति वर्ग की तुलना जापानी या जर्मन राजतांत्रिक पूंजीपति वर्ग के साथ करने से पता चलता है कि साम्राज्यवाद के युग में तीव्र से तीव्र राजनीतिक भेद भी बेहद कम हो जाता है–इस कारण नहीं कि इस भेद का आम तौर पर कोई महत्व नहीं होता बल्कि इसलिए कि इन सभी दृष्टांतों में हम एक ऐसे पूंजीपति वर्ग पर विचार कर रहे हैं जिसमें परजीविता की निश्चित विशेषताएं पायी जाती हैं।
उद्योग की विभिन्न शाखाओं में से किसी एक शाखा में, अनेक देशों में से किसी एक देश आदि में पूंजीपति जो बहुत ऊंचा इजारेदारी मुनाफ़ा कमाते हैं उससे उनके लिए आर्थिक दृष्टि से यह संभव हो जाता है कि वे मजदूरों के कुछ हिस्सों को, और कुछ समय तक उनके काफ़ी बड़े अल्पमत को, रिश्वत दे सकें और उन्हें अन्य सभी उद्योगों अथवा राष्ट्रों के खिलाफ़ किसी एक उद्योग विशेष या राष्ट्र विशेष के पूंजीपति वर्ग की तरफ़ मिला लें। दुनिया के बंटवारे के लिए साम्राज्यवादी राष्ट्रों के बीच विरोधों के उग्र होते जाने के कारण यह चेष्टा और बढ़ती है। और इस प्रकार साम्राज्यवाद तथा अवसरवाद के बीच वह