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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१८१

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यह करना चाहिए कि वह संक्रमण की अवस्था में पूंजीवाद है, या यह कहना अधिक उचित होगा कि वह मरणोन्मुख पूंजीवाद है। इस संबंध में इस बात को ध्यान में रखना बहुत शिक्षाप्रद होगा कि पूंजीवादी अर्थशास्त्री आधुनिक पूंजीवाद का वर्णन करते समय इस प्रकार के आकर्षक शब्दों तथा फ़िकरों का इस्तेमाल करते हैं जैसे "परस्पर गुंथ जाना", "पार्थक्य का अभाव", आदि; "अपने कामों तथा विकासक्रम के अनुकूल" बैंक "शुद्धत: निजी व्यापार के कारोबार नहीं" होते हैं, "वे शुद्धतः निजी व्यापार के नियमन के क्षेत्र से अधिकाधिक बाहर निकलते जा रहे हैं"। और यही रीसेर साहब, जिनके शब्दों को हमने अभी ऊपर उद्धृत किया है बड़ी गंभीरता के साथ घोषणा करते हैं कि "समाजीकरण" के बारे में मार्क्सवादियों की "भविष्यवाणी" "सही नहीं साबित हुई है"!

फिर इन आकर्षक शब्दों "परस्पर गुंथ जाने" का क्या अर्थ है? वे केवल उस प्रक्रिया की सबसे ज्वलंत विशेषता को अभिव्यक्त करते हैं जो हमारी आंखों के सामने हो रही है। इनका मतलब यह है कि देखनेवाला अलग-अलग पेड़ों को तो गिन लेता है पर वह जंगल को नहीं देख पाता। इन शब्दों में सतही, संयोगवश तथा अव्यवस्थित ढंग से होनेवाली बातों को हूबहू नक़ल कर दिया गया है। ये शब्द इस बात का रहस्योद्घाटन करते हैं कि अवलोकन करनेवाला एक ऐसा व्यक्ति है जो आधार सामग्री की विपुलता को देखकर घबरा गया है पर वह उसके अर्थ तथा महत्व को समझने में सर्वथा असमर्थ है। शेयरों का स्वामित्व और निजी सम्पत्ति के मालिकों के पारस्परिक संबंध "ऊटपटांग ढंग से परस्पर गुंथ जाते हैं"। परन्तु इस गुंथाव की बुनियाद में, स्वयं उसका आधार, उत्पादन के बदलते हुए सामाजिक संबंध हैं। जब कोई बड़ा कारोबार अति विशाल रूप धारण कर लेता है और विपुल तथ्य-सामग्री का सही-सही हिसाब लगाने के आधार पर मूलभूत कच्चे माल के संभरण

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