पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१८२

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को इस प्रकार एक योजना के अनुसार संगठित करता है कि करोड़ों लोगों की कुल जितनी आवश्यकता है उसका दो-तिहाई या तीन-चौथाई भाग तक ही उन्हें मिल सके; जब कच्चा माल एक सुव्यवस्थित तथा संगठित ढंग से उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त स्थानों को, कभी-कभी तो सैकड़ों या हज़ारों मील दूर भी, भेजा जाता है; जब अनेक प्रकार का तैयार माल बनाने तक की सारी क्रमिक अवस्थाओं का निर्देशन एक ही केंद्र से किया जाता है; जब ये चीजें एक ही योजना के अनुसार करोड़ों उपभोक्ताओं के बीच वितरित की जाती हैं (अमरीकी "तेल ट्रस्ट" द्वारा अमरीका तथा जर्मनी में तेल का वितरण)–तब यह स्पष्ट हो जाता है कि चीजें "परस्पर गुंथ" ही नहीं गयी हैं बल्कि उत्पादन का "समाजीकरण" भी हो गया है। यह स्पष्ट हो जाता है कि निजी आर्थिक संबंध तथा निजी सम्पत्ति के संबंध एक ऐसा खोल बन गये हैं जिसके अंदर की सामग्री अब उसमें नहीं समाती, एक ऐसा खोल बन गये हैं जिसके विनाश को कृत्रिम उपायों द्वारा रोकने की कोशिश की गयी तो अवश्य ही उसका क्षय हो जायेगा; एक ऐसा खोल जो काफ़ी दीर्घकाल तक क्षय की दशा में रह सकता है (यदि हम हद से ज्यादा यह भी मान लें कि अवसरवादी फोड़े का इलाज बहुत लम्बा खिंचेगा), परन्तु इस खोल को अनिवार्य रूप से हटाना पड़ेगा।

जर्मन साम्राज्यवाद के उत्साही प्रशंसक शुल्ज़े-गैवर्नित्ज़ जोश के साथ कहते हैं :

"एक बार जर्मन बैंकों की सर्वोच्च व्यवस्था एक दर्जन लोगों के हाथों में सौंप दिये जाने के बाद भी आज उनका काम सार्वजनिक हित की दृष्टि से अधिकांश राज्य-मंत्रियों के काम की अपेक्षा अधिक महत्व रखता है।" (यहां पर बैंकपतियों, मंत्रियों, उद्योगपतियों तथा सूदखोरों के "परस्पर गुंथ जाने" को बड़ी आसानी से भुला दिया गया

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