पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

की विशालता से ही उत्पन्न होते हैं। प्रतियोगिता का इस प्रकार इजारेदारी में बदल जाना आधुनिक पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण नहीं तो कम से कम एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना अवश्य है और हमें उसपर विस्तार से विचार करना चाहिए। किन्तु उसके पहले, एक संभव ग़लतफ़हमी को हमें दूर कर लेना चाहिए।

अमरीकी आंकड़े बतलाते हैं कि उद्योगों की २५० शाखाओं में ३,००० बड़े-बड़े कारखाने हैं, मानो उद्योगों की हर शाखा में विशालतम पैमाने के सिर्फ़ बारह कारखाने हैं।

पर बात ऐसी नहीं है। उद्योगों की हर शाखा में बड़े पैमाने के कारखाने नहीं हैं, और इसके अलावा, अपने विकास की चरम अवस्था में पूंजीवाद की एक अत्यंत महत्वपूर्ण विशेषता, उत्पादन का तथाकथित संयोजन, अर्थात् उद्योगों की उन विभिन्न शाखाओं का एक ही कारखाने के अंदर आ जाना है, जिनका संबंध या तो कच्चे माल को तैयार करने की क्रमिक अवस्थाओं से होता है (जैसे कि खनिज लोहे को गलाकर कच्चा लोहा तैयार करना , कच्चे लोहे से इस्पात बनाना , और फिर शायद इस्पात की विभिन्न चीजें तैयार करना ) या फिर जो एक दूसरे की सहायक होती हैं (जैसे बेकार जानेवाले कच्चे माल का या मुख्य चीज़ के उत्पादन के दौरान में पैदा हो जानेवाली दूसरी छोटी-छोटी चीज़ों का उपयोग करने का उद्योग ; पैकिंग का सामान तैयार करने का उद्योग, आदि)।

हिल्फ़र्डिंग लिखते हैं : “कारखाने के सम्मिलन से व्यापार के चढ़ाव-उतार बराबर हो जाते हैं और इसलिए सम्मिलित कारखाने के मुनाफ़े की दर अधिक स्थायी हो जाती है। दूसरे, सम्मिलित कारखानों की वजह से व्यापार की ज़रूरत खत्म हो जाती है। तीसरे, उसके कारण प्राविधिक उन्नति की गुंजाइश बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप उससे 'विशुद्ध' (अर्थात् अ-सम्मिलित ) कारखानों से होनेवाले मुनाफ़े की

2*

१९