अपेक्षा 'अतिरिक्त' मुनाफ़ा होता है। चौथे, गहरी मंदी के ज़माने में, जब तैयार माल के दामों में कच्चे माल के दामों की अपेक्षा ज्यादा कमी होने लगती है, उस समय इस बात के कारण 'विशुद्ध' कारखानों की अपेक्षा सम्मिलित कारखानों की हालत ज्यादा मजबूत होती है, प्रतियोगिता के संघर्ष में वे मज़बूत होते हैं ।"*[१]
जर्मन पूंजीवादी अर्थशास्त्री, हेमैन ने जर्मनी के लोहे के उद्योग में 'मिश्रित" अर्थात् सम्मिलित कारखानों के सम्बंध में एक विशेष पुस्तक लिखी है। वह कहते हैं : "कच्चे माल की महंगी दर और तैयार माल की सस्ती दर के चाकों के बीच कुचलकर विशुद्ध कारखाने नष्ट हो जाते हैं।" इस भांति हमें निम्नलिखित तस्वीर मिलती है : “एक तरफ़ तो बड़ी-बड़ी कोयले की कम्पनियां हैं जो लाखों टन कोयला हर साल पैदा करती हैं और जो अपने कोयला-सिंडीकेट में मजबूती से संगठित हैं और दूसरी ओर, कोयले की खानों से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध बड़े-बड़े इस्पात के कारखाने हैं जिनका अपना इस्पात का सिंडीकेट है। ये विशाल कारखाने , जो हर साल ४,००,००० टन इस्पात तैयार करते हैं, जिनमें विपुल परिमाण में कच्ची धातु तथा कोयले की खपत होती है और जो इस्पात की चीजें भी तैयार करते हैं, जिनमें १०,००० मजदूर काम करते हैं, जो कम्पनी के ही क्वार्टरों में रहते हैं, कभी-कभी जिनके खुद अपने बन्दरगाह और रेलवे लाइनें भी होती हैं, जर्मनी के लोहे और इस्पात उद्योग के ठेठ प्रतिनिधि हैं। और संकेंद्रण बढ़ता जा रहा है। अलग-अलग कारखाने दिनोंदिन बड़े होते जा रहे हैं। अधिकाधिक संख्या में कारखाने, वे चाहे किसी एक ही उद्योग से संबंधित हों या कई अलग-अलग उद्योगों के हों, मिलकर विशालकाय कारखानों के रूप में संगठित हो रहे हैं, जिनके पीछे बर्लिन के आधे दर्जन बैंक हैं जो उनको निर्देशित करते हैं। जर्मनी के खनिज
- ↑ *वित्तीय पूंजी", रूसी संस्करण, पृष्ठ २८६-२८७ ।
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