पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/४६

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१७,००,००,०००। १९१४ में पहले वाले न अपनी पूंजी बढ़ाकर २५,००,००,००० कर ली और दूसरे वाले ने एक और प्रथम कोटि के बैंक «Schaaffhausenscher Bankcerein» के साथ मिलकर अपनी पूंजी बढ़ाकर ३०,००,००,००० मार्क कर ली। और ज़ाहिर है कि प्रमुखतम स्थान प्राप्त करने के इस संघर्ष के साथ ही इन दो बैंकों के बीच ज्यादा टिकाऊ क़िस्म के "समझौते" भी ज़्यादा मौक़ों पर होते रहे । बैंकों के कारोबार के इस विकास से बैंकों के कारोबार के विशेषज्ञ , जो आर्थिक प्रश्नों को एक ऐसे दृष्टिकोण से देखते हैं , जो अत्यंत नरम तथा सतर्क पूंजीवादी सुधारवाद की सीमाओं से रत्ती भर भी आगे नहीं जाता, जिन निष्कर्षों पर पहुंचने पर मजबूर हुए हैं वे निम्नलिखित हैं :

«Disconto-Gesellschaft» की पूंजी बढ़कर ३०,००,००,००० मार्क तक पहुंच जाने पर टीका करते हुए «Die Banks» नामक जर्मन पत्रिका ने लिखा : "दूसरे बैंक भी यही रास्ता अपनायेंगे और आज आर्थिक दृष्टि से जर्मनी पर जिन तीन सौ लोगों का शासन है उनकी संख्या धीरे-धीरे घटते- घटते पचास , पच्चीस या इससे भी कम रह जायेगी। यह आशा नहीं की जा सकती कि संकेंद्रण की दिशा में यह नवीनतम प्रगति बैंकों के कारोबार तक ही सीमित रहेगी। अलग-अलग बैंकों के बीच जो घनिष्ठ संबंध हैं उनका परिणाम स्वाभाविक रूप से यह होता है कि वे औद्योगिक सिंडीकेट , जिनपर इन बैंकों की कृपादृष्टि रहती है, एक- दूसरे के साथ आते जाते हैं ... एक दिन अचानक हमें यह देखकर आश्चर्य होगा कि हमारी आंखों के सामने ट्रस्टों के अलावा और कुछ नहीं है और हमारे सामने इस बात की आवश्यकता आ खड़ी होगी कि हम इन निजी इजारेदारियों के स्थान पर राज्यीय इजारेदारियों की स्थापना करें। परन्तु हम अपने आपको इसके अलावा और किसी बात के लिए दोष नहीं दे सकते कि हमने घटनाओं को अपने रास्ते पर

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