पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/५

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भूमिका

यह पुस्तक जो पाठकों के सामने प्रस्तुत की जा रही है , १६१६ के वसंत में जूरिच में लिखी गयी थी। वहां पर जिन परिस्थितियों में काम करने के लिए मैं लाचार था उनमें फ्रांसीसी और अंग्रेजी साहित्य की किसी क़दर कमी स्वाभाविक थी और रूसी साहित्य का तो बहुत ही अभाव था। फिर भी साम्राज्यवाद के संबंध में जे० ए० हाबसन की किताब का मैंने बहुत ध्यान से उपयोग किया। अंग्रेजी में इस विषय पर यही मुख्य किताब है। मेरी राय में यह किताब ऐसे ही अत्यंत ध्यान से पढ़ने लायक है।

यह पुस्तक जारशाही के सेंसर को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी थी। इसलिए न केवल मुझे तथ्यों के बिल्कुल सैद्धान्तिक , आर्थिक विश्लेषण तक ही अपने आपको सीमित रखना पड़ा, बल्कि राजनीति के सम्बन्ध में जो कुछ आवश्यक बातें कहनी थीं, उन्हें भी बहुत ही सावधानी के साथ, इशारों के द्वारा, रूपक की भाषा में- ईसप की कहानियों की- उस अभिशप्त भाषा में - लिखना पड़ा है, अपनी “कानूनी" चीजें लिखते समय जिसका सहारा लेने के लिए जारशाही ने तमाम क्रान्तिकारियों को मजबूर कर दिया था।

आजादी के इन दिनों में पुस्तिका के इन वाक्यों को पढ़ने में बड़ा कष्ट होता है जो सेंसर के कारण विकृत हो गये हैं, घुट गये हैं, मानो किसी लोहे के शिकंजे में वे कुचल दिये गये हैं। साम्राज्यवाद समाजवादी क्रांति की पूर्व-वेला है , सामाजिक-अंधराष्ट्रवाद (बातें समाजवादी करना और काम अंधराष्ट्रवादी) समाजवाद के साथ गहरा विश्वासघात करना , पूंजीवादी