पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/६

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वर्ग से पूरी तरह मिल जाना है ; मजदूर आन्दोलन में यह फूट साम्राज्यवाद की वस्तुगत परिस्थितियों के साथ किस प्रकार जुड़ी हुई है, आदि प्रश्नों पर मुझे बहुत ही “दबी" हुई भाषा में बात कहनी पड़ी थी और जो पाठक इस विषय में दिलचस्पी रखते हैं उनसे मैं अनुरोध करूंगा कि वे १६१४-१७ में विदेशों में लिखे गये मेरे लेखों को नये संस्करण में पढ़ें जो शीघ्र ही प्रकाशित होनेवाला है। पृष्ठ ११६-१२० के एक उद्धरण की ओर विशेष रूप से ध्यान दिलाना ज़रूरी है।★ पाठकों को यह बताने के लिए, और ऐसे रूप में जिसे सेंसर स्वीकार कर ले, कि दूसरे देशों को हड़प लेने के प्रश्न पर पूंजीवादी और उनमें जाकर मिल जानेवाले सामाजिक- अंधराष्ट्रवादी (जिनका विरोध कौत्स्की इतने ढीले-ढाले ढंग से करते हैं) कितनी बेशर्मी से झूठ बोलते हैं ; यह दिखलाने के लिए कि अपने पूंजीपतियों द्वारा दूसरे देशों को हड़प लेने की बात पर ये लोग कितनी निर्लज्जता से पर्दा डालते हैं, मुझे... जापान का उदाहरण लेना पड़ा था! पाठक आसानी से जापान के स्थान पर रुस समझ लेगा और कोरिया के स्थान पर वह फ़िनलैंड, पोलैंड, कूरलैंड, उक्रइन , खिवा, बुखारा, एस्तोनिया या ऐसे ही दूसरे किसी प्रदेश को समझ लेगा जहां महान् रूसी इतर जातियां रहती हैं।

मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक पाठकों को बुनियादी आर्थिक प्रश्न को, अर्थात् साम्राज्यवाद के मूल आर्थिक सार के प्रश्न को समझने में मदद देगी , क्योंकि जब तक इस प्रश्न का अध्ययन नहीं किया जाता तब तक वर्तमान युद्ध और वर्तमान राजनीति को समझना और उसका ठीक-ठीक मूल्यांकन करना भी असंभव होगा।

पेत्रोग्राद २६ अप्रैल, १९१७
लेखक



★ देखिये इस पुस्तक के पृष्ठ १७४-१७५। - सं०