करने की शर्मनाक घटनाओं आदि की ओर है) “जर्मनी के उद्योगीकरण के युग का श्रीगणेश किया था, आजकल बैंक और उद्योग 'अकेले ही' इस काम को कर लेते हैं। स्टाक एक्सचेंज पर हमारे बड़े बैंकों का प्रभुत्व पूर्णतः संगठित जर्मन औद्योगिक राज्य की अभिव्यक्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। अपने आप काम करनेवाले आर्थिक नियमों का क्षेत्र यदि इस प्रकार संकुचित हो जाता है, और यदि बैंकों द्वारा सचेत रूप से नियमन का क्षेत्र बहुत बढ़ जाता है तो संचालन करनेवाले कुछ इने-गिने लोगों का राष्ट्रीय आर्थिक उत्तरदायित्व बहुत बढ़ जाता है।" यह बात जर्मन प्रोफ़ेसर शुल्जे-गैवर्नित्ज़*[१] ने लिखी है, जो जर्मन साम्राज्यवाद के समर्थक हैं और जिन्हें सभी देशों के साम्राज्यवादी इस विषय का पंडित मानते हैं; और वह एक “छोटी-सी ब्यौरे की बात को छिपाये रखने की कोशिश करते हैं, यानी इस बात को कि बैंकों द्वारा आर्थिक जीवन का "सचेत रूप से नियमन" इस बात में है कि मुट्ठी-भर "पूर्णतः संगठित" इजारेदार पब्लिक का खून निचोड़ लेते हैं। पूंजीवादी प्रोफ़ेसर का काम यह नहीं होता कि वह सारी व्यवस्था के तमाम कल- पुर्जों को खोलकर सबके सामने रख दे या बैंक के इजारेदारों के सारे हथकंडों को सबके सामने ज़ाहिर कर दे, बल्कि उसका काम तो उन्हें आकर्षक रूप में पेश करना होता है
इसी प्रकार रीसेर, जो और भी प्रामाणिक अर्थशास्त्री हैं और स्वयं “बैंकवाले" हैं, अकाट्य तथ्यों को उल्टा-सीधा समझा देने के लिए निरर्थक शब्दों से खेलते हैं: स्टाक एक्सचेंजों में से उनकी वह विशेषता बिल्कुल ग़ायब होती जा रही है जो पूरे राष्ट्रीय अर्थतंत्र के लिए, और विशेष रूप से प्रतिभूतियों (सिक्योरिटियों) के परिचालन के लिए , नितांत
- ↑ * Schulze-Gaevernitz, «Grundriss der Sozialökonomiks # «Die deutsche Kreditbanks, Tibingen, 1915, पृष्ठ १०१।
4*
५१