इस प्रकार उन्हें यह क्षमता प्रदान की जाये कि वे उस बैंक विशेष के औद्योगिक प्रभाव-क्षेत्र के भीतर ज्यादा अच्छी तरह काम कर सकें। इस पद्धति को और अधिक बल प्रदान करने के लिए बैंक अपने निरीक्षण मंडलों में ऐसे लोगों को चुनने की कोशिश करते हैं जो औद्योगिक समस्याओं के विशेषज्ञ हों, जैसे उद्योगपति , भूतपूर्व पदाधिकारी , विशेषतः ऐसे अफ़सर जो पहले रेलवे या खानों के विभागों में काम कर चुके हों," आदि।*[१]
फ्रांस के बैंक के कारोबार में भी हम कुछ ही भिन्न रूप में यह पद्धति देखते हैं। उदाहरण के लिए , «Credit Lyonnais» बैंक ने, जो फ्रांस के तीन सबसे बड़े बैंकों में से एक है, वित्तीय शोधकार्य सेवा (service des études financieres) की स्थापना की है जिसमें पचास से अधिक इंजीनियर, सांख्यिकीविद , अर्थशास्त्री तथा वकील आदि स्थायी रूप से नौकर हैं। इसपर उसे प्रति वर्ष छः-सात लाख फ्रांक खर्च करने पड़ते हैं। यह सेवा आठ विभागों में बंटी हुई है: एक विभाग विशेष रूप से प्रौद्योगिक संस्थानों से संबंधित जानकारी एकत्रित करने का काम करता है , दूसरा आम आंकड़ों का अध्ययन करता है, तीसरा रेलों और जहाज़ की कम्पनियों का विशेषज्ञ है , चौथा प्रतिभूतियों का , पांचवां वित्तीय रिपोर्टों का, और इसी प्रकार अन्य विभाग हैं।**[२]
इसका परिणाम एक तरफ़ तो यह होता है कि बैंकों की तथा उद्योगों की पूंजी निरंतर बढ़ती हुई हद तक एक-दूसरे में मिलती जाती है, या जिसे न० इ० बुखारिन ने बहुत उचित शब्दों में यों कहा है कि वे एक- दूसरे में विलीन होती जाती हैं और दूसरी तरफ़ बैंक बढ़कर सचमुच "सर्वव्यापी स्वरूप" वाली संस्थाओं का रूप धारण कर लेते हैं। इस प्रश्न
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