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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/६४

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जिसे विनिमय का तनिक भी ज्ञान नहीं था, और समाजवाद के अंतर्गत भी उसका अस्तित्व रहेगा !

परन्तु वित्तीय अल्पतंत्र के भयानक शासन से संबंधित भयानक तथ्य इतने ज्वलंत हैं कि सभी पूंजीवादी देशों में , अमरीका में , फ्रांस तथा जर्मनी में, एक पूरा साहित्य ऐसा पैदा हो गया है जो पूंजीवादी दृष्टिकोण से लिखा गया है, पर जिसमें फिर भी इस अल्पतंत्र का काफ़ी सच्चा चित्र तथा उसकी आलोचना -- जो स्वाभाविक रूप से निम्न-पूंजीवादी ढंग की है - मिलती है।

"होल्डिंग की पद्धति" को, जिसका उल्लेख संक्षेप में हम ऊपर कर चुके हैं, आधारशिला बनाया जाना चाहिए। जर्मन अर्थशास्त्री हेमैन ने, जो शायद इस विषय की ओर ध्यान आकर्षित करानेवाले पहले व्यक्ति थे, इसके सार का वर्णन इस प्रकार किया है :

"कारोबार का प्रधान, मुख्य कम्पनी” (शब्दशः "मां कम्पनी") "पर नियंत्रण रखता है ; यह कम्पनी अधीन कम्पनियों" ("बेटी कम्पनियों") पर शासन करती है और ये अधीन कम्पनियां दूसरी अधीन कम्पनियों" ("नाती-नातिन कम्पनियों") “पर अपना नियंत्रण रखती हैं, और यह क्रम इसी प्रकार चलता रहता है। इस प्रकार अपेक्षाकृत बहुत थोड़ी पूंजी से ही उत्पादन के अत्यंत विस्तृत क्षेत्रों पर प्रभुत्व रखना संभव होता है। वास्तव में, यदि ५० प्रतिशत पूंजी का अपने हाथ में होना किसी कम्पनी को अपने नियंत्रण में रखने के लिए काफ़ी होता है तो कारोबार के प्रधान को दूसरी श्रेणी की अधीन कम्पनियों में अस्सी लाख की पूंजी पर नियंत्रण रखने के लिए केवल दस लाख की पूंजी की आवश्यकता होगी। और यदि इस 'गंठजोड़' को और बढ़ाया जाये तो दस लाख की पूंजी से एक करोड़ साठ लाख , तीन करोड़ बीस लाख और इसी प्रकार और अधिक पूंजी पर नियंत्रण रखना संभव है।"*[]


  1. Hans Gideon Heymann, «Die gemischten Werke im deutschen Grosseisengerwerber, Stuttgart, 1904, पृष्ठ २६८-२६९ ।

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