जाना - यह है वित्तीय पूंजी के उत्थान का इतिहास और यही इस शब्द का सार है।
अब हमें यह बताना है कि माल के उत्पादन तथा निजी सम्पत्ति की आम परिस्थितियों के अंतर्गत , किस प्रकार पूंजीवादी इजारेदारियों का "व्यापारिक कामकाज" अनिवार्य रूप से वित्तीय अल्पतंत्र के प्रभुत्व का रूप धारण कर लेता है। यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि पूंजीवादी जर्मन - और केवल जर्मन ही नहीं- विज्ञान के रीसेर, शुल्जे-गैवर्नित्ज़ , लिएफ़मैन आदि जैसे सारे के सारे प्रतिनिधि साम्राज्यवाद तथा वित्तीय पूंजी के समर्थक हैं। अल्पतंत्र के निर्माण में “कौनसे कल-पुर्जे किस तरह काम करते हैं", उसके तरीके क्या हैं , उसकी “निष्कलंक तथा पापपूर्ण आय कितनी है, संसदों के साथ उसके संबंध क्या हैं, आदि , आदि बातों का रहस्योद्घाटन करने के बजाय वे उसपर परदा डालने तथा मुलम्मा चढ़ाने की कोशिश करते हैं। वे इन “ उलझे हुए प्रश्नों से कतराने के लिए लम्बे-चौड़े तथा गोलमोल फ़िक़रों का इस्तेमाल करते हैं, बैंकों के संचालकों की “उत्तरदायित्व की भावना" को जागृत करते हैं, प्रशिया के अधिकारियों की “कर्तव्यपरायणता" की प्रशंसा करते हैं, इजारेदारियों के "निरीक्षण” तथा “नियमन" के लिए प्रस्तुत किये गये संसद के विधेयकों की सरासर हास्यास्पद छोटी-छोटी ब्योरे की बातों का गूढ़ अध्ययन करते हैं, और ऐसे सिद्धांतों के साथ खिलवाड़ करते हैं जिसका एक उदाहरण प्रोफ़ेसर लिएफ़मैन द्वारा निर्धारित निम्नलिखित वैज्ञानिक परिभाषा है : "वाणिज्य एक ऐसा व्यवसाय है जिसका उद्देश्य है : माल एकत्रित करना उसके भंडार भरना और उसे उपलब्ध बनाना"*[१] (मोटे अक्षरों का प्रयोग प्रोफ़ेसर साहब ने स्वयं किया है)... इससे यह निष्कर्ष निकलेगा कि वाणिज्य का अस्तित्व आदिम मनुष्य के जमाने में भी था,
- ↑ * R. Liefmarin, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक, पृष्ठ ४७६।
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