स्पष्ट है कि बड़ी कम्पनियों में शायद ही कोई ऐसी होगी जो इस पद्धति को इस्तेमाल न करती हो।"*[१]
इस तरीके का व्यापक रूप से प्रयोग करनेवाली एक विशाल इजारेदार कम्पनी के उदाहरण के रूप में लेखक प्रख्यात "जनरल एलेक्ट्रिक कम्पनी" का उल्लेख करता है (जिसका उल्लेख हम आगे चलकर फिर करेंगे )। १९१२ में यह हिसाब लगाया गया था कि १७५ से २०० तक दूसरी कम्पनियों में इस कम्पनी के हिस्से थे, ज़ाहिर है उसका उनपर प्रभुत्व था और इस प्रकार कुल मिलाकर लगभग १५०,००,००,००० मार्क की पूंजी पर उसका नियंत्रण था ।**[२]
नियंत्रण के सारे नियम , देयादेय-फलकों का प्रकाशन , एक निश्चित ढांचे के अनुसार देयादेय-फलकों का तैयार किया जाना , बही-खातों की खुली जांच आदि वे सारी बातें व्यर्थ सिद्ध होती हैं जिनके बारे में नेकनीयत प्रोफ़ेसर तथा अधिकारी- अर्थात् वे लोग जिनमें पूंजीवाद की रक्षा करने तथा उसे आकर्षक रूप देने की नेकनीयत कूट कूटकर भरी होती है- सर्वसाधारण के सम्मुख भाषण देते हैं। क्योंकि निजी सम्पत्ति पर कोई उंगली नहीं उठा सकता और किसी को भी शेयर खरीदने , बेचने , बदलने या गिरवी रखने आदि से रोका नहीं जा सकता।
बड़े-बड़े रूसी बैंकों में यह “होल्डिंग की पद्धति" किस हद तक विकसित हो चुकी है इसका अनुमान ई० अगाह् द द्वारा दिये गये आंकड़ों से लगाया जा सकता है, जो पंद्रह वर्ष तक रूसी-चीनी बैंक के एक पदाधिकारी थे और जिन्होंने मई १९१४ में एक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसका नाम
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