पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/८१

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-वर्तमान शासन के अधीन "व्यापकतम राजनीतिक स्वतंत्रता भी हमें अस्वतंत्र लोगों राष्ट्र में परिवर्तित हो जाने से नहीं बचा सकती।"*[१]

जहां तक रूस का सवाल है हम अपने आपको केवल एक उदाहरण तक ही सीमित रखेंगे। कुछ वर्ष पहले सभी अखबारों ने यह खबर छापी कि सरकारी खजाने के ऋण विभाग के संचालक दवीदोव ने अपने पद से इस्तीफ़ा देकर एक बड़े बैंक में नौकरी कर ली है, जहां, करार के अनुसार, उन्हें कई वर्ष के दौरान में वेतन के रूप में कुल दस लाख रूबल से अधिक रक़म मिलेगी। ऋण विभाग एक ऐसी संस्था है जिसका काम "देश की ऋण देनेवाली सभी संस्थानों के काम का समन्वयन करना" है और जो सेंट पीटर्सबर्ग तथा मास्को के बैंकों को लगभग ८० करोड़ से १ अरब रूबल तक की सहायता देती है। **[२]- -

पूरे पूंजीवाद की आम तौर पर यह विशेषता है कि उसमें पूंजी के स्वामित्व को उत्पादन में पूंजी लगाने से अलग कर दिया जाता है , द्रव्य पूंजी को औद्योगिक या उत्पादनशील पूंजी से अलग कर दिया जाता है, और द्रव्य पूंजी से प्राप्त होनेवाली आय पर ही जीवित रहनेवाले सूदखोरों को कारोबार करनेवालों तथा उन तमाम लोगों से अलग कर दिया जाता है जिनका पूंजी की व्यवस्था में प्रत्यक्ष रूप से हाथ होता है। साम्राज्यवाद , अर्थात् वित्तीय पूंजी का प्रभुत्व , पूंजीवाद की वह चरम अवस्था है जहां पहुंचकर यह अलगाव बहुत व्यापक रूप धारण कर लेता है। पूंजी के अन्य सभी रूपों पर वित्तीय पूंजी की प्रभुता का अर्थ सूदखोरों और वित्तीय अल्पतंत्र की प्रधानता होता है; इसका मतलब यह होता है कि वित्तीय दृष्टि से “शक्तिशाली" गिने-चुने राज्यों को अलग छांट लिया जाये। यह प्रक्रिया किस पैमाने पर चल रही है इसका


  1. * उपरोक्त , १९११, २, पृष्ठ ८२५; १९१३ , २, पृष्ठ ९६२ ।
  2. ** E. Agahd, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक, पृष्ठ २०२।

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