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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/९१

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हुआ उस समय भी उसने यही किया। आस्ट्रिया तथा सरबिया के बीच , सात महीने की अवधि को छोड़कर, १९०६ से १९११ तक जो महसूलों का युद्ध चलता रहा उसका कारण आंशिक रूप से सरबिया को युद्ध- सामग्री देने के सिलसिले में आस्ट्रिया तथा फ्रांस की पारस्परिक प्रतियोगिता थी। जनवरी १९१२ में पाल देशानेल ने चैम्बर आफ़ डिपुटीज़ में कहा कि १९०८ से १९११ तक फ्रांसीसी कम्पनियों ने सरबिया को ४,५०,००,००० फ़्रांक की युद्ध-सामग्री दी थी।

साओ-पालो (ब्राज़ील) में आस्ट्रिया-हंगरी के कौंसल की एक रिपोर्ट में कहा गया है : “ब्राज़ील की रेलों का निर्माण मुख्यतः फ्रांस , बेलजियम , ब्रिटेन तथा जर्मनी की पूंजी से हो रहा है। इन रेलों के निर्माण के संबंध में जो वित्तीय लेन-देन हुई है उसमें ऋण देनेवाले देशों ने यह शर्त लगायी है कि रेलों के लिए आवश्यक सामान का आर्डर उन्हें ही दिया जायेगा।"

हम यह कह सकते हैं कि इस प्रकार वित्तीय पूंजी शब्दशः अपना जाल संसार के सभी देशों में फैलाती है। इसमें उपनिवेशों में स्थापित किये जानेवाले बैंकों तथा उनकी शाखाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। जर्मन साम्राज्यवाद दूसरे देशों में अपने उपनिवेश बनानेवाले उन “पुराने" देशों को बड़ी ईर्ष्या की दृष्टि से देखता है जो अपने लिए इस बात का पूरा प्रबंध करने में विशेष रूप से सफल हुए हैं। १९०४ में ग्रेट ब्रिटेन के ५० औपनिवेशिक बैंक थे जिनकी २,२७९ शाखाएं थीं ( १९१० में इन बैंकों की संख्या ७२ और उनकी शाखाओं की संख्या ५,४४९ थी); फ्रांस के २० बैंक थे जिनकी १३६ शाखाएं थीं; हालैंड के १६ बैंक थे जिनकी ६८ शाखाएं थीं, और जर्मनी के "केवल" १३ बैंक थे जिनकी ७० शाखाएं थीं।*[] दूसरी तरफ़ अमरीकी


  1. * Riesser, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक , चौथा संस्करण , पृष्ठ ३७५, Diouritch, पृष्ठ २८३ ।

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