पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/९३

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हर तरह से बढ़ते गये , वैसे-वैसे "स्वाभाविक रूप से" परिस्थितियां इन संघों के बीच अन्तर्राष्ट्रीय समझौते की दिशा में, और अन्तर्राष्ट्रीय कार्टेलों के निर्माण की दिशा में खिंचती गयीं।

यह पूंजी तथा उत्पादन के विश्वव्यापी संकेंद्रण की नयी मंज़िल है जो इससे पहले की तमाम मंज़िलों से कहीं ज्यादा ऊंची है। आइये, हम देखें कि यह महा-इजारेदारी किस प्रकार विकसित होती है।

बिजली-उद्योग नवीनतम प्राविधिक सफलताओं का सबसे लाक्षणिक उदाहरण है , उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तथा वीसवीं शताब्दी के आरंभ में पूंजीवाद की सारी विशेषताएं इसमें पायी जाती हैं। यह उद्योग नये पूंजीवादी देशों में से दो सबसे उन्नत देशों में, संयुक्त राज्य अमरीका तथा जर्मनी में, सबसे अधिक विकसित हुआ है। जर्मनी में १९०० के संकट ने इसके संकेंद्रण को विशेष रूप से प्रबल प्रोत्साहन दिया। संकट के दौरान में बैंकों ने, जो उस समय तक उद्योगों के साथ काफ़ी अच्छी तरह घुलमिल चुके थे, अपेक्षतः छोटी कम्पनियों के तबाह होने तथा बड़ी कम्पनियों में उनके विलीन हो जाने की प्रक्रिया को बहुत तेज़ कर दिया तथा गहरा बना दिया। जीडेल्स ने लिखा है , “बैंक उन कम्पनियों को , जिन्हें पूंजी की सबसे अधिक आवश्यकता है , सहारा देने से इंकार करके पहले तो बहुत ज़बर्दस्त तेज़ी पैदा करते हैं और फिर वे कम्पनियां , जो उनके साथ काफ़ी घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध नहीं होती, बुरी तरह ठप हो जाती हैं।"*[१]

फलस्वरूप, १९०० के बाद जर्मनी में संकेंद्रण बड़ी तीव्र गति से बढ़ा १६०० तक बिजली-उद्योग में आठ या सात 'समूह” थे। हर एक में कई-कई कम्पनियां थीं (कुल मिलाकर २८ कम्पनियां थीं) और हर एक के पीछे २ से लेकर ११ बैंकों तक का हाथ था। १९०८ और १६१२ के बीच ये सारे समूह आपस में मिलकर दो, या एक रह गये। नीचे दिये हुए खाके से इस प्रक्रिया का पता चलता है :


  1. जीडेल्स, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक, पृष्ठ २३२ ।

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