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पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१०३

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[ १०२ । नवीन । नंदनंदन दास हित साहित लहरी कोन ॥ १०६॥ मुनि कहिये सात रसन कहे एक रस कहे छ गौरीनंद दसन संज्ञा एक ते भये संवत सोरह सै सात १६०७ बैसाष मास अछै त्रितिया तिथ नछत्र कृतका सुकर्म जोग अर्थ सुगम ।। १०९॥ हे बृजचंदबदनचकोर। खै रहेंगे कहिं नैना नेह नातोजोर॥ धातु देस बिचारि कर बिपरीत पहिले जोर ॥ पाहिले कर पहिल दीर्घ बहुरि लघुता बोर। बार कर विपरीत दून की मोहि नाहीं निहोर ॥ जनम संगी अंग के को संग काको दोर । इहै निस दिस मोहि चिंता समुझ सजनी तोर ॥ सूरदास पुकार कासे करे बिन घन मोर ॥११० ॥ . उक्त नाइका की सपी प्रत कै हमारे द्रग नंदनंदन चंद के चकार कर होंगे (ढहैं ) धातु तामा देस मालवा ताको विपरीत करने ते मालवा तामा ताके आदि के बरन ते माता ताही में पाछिल वरन ता ताको (ताके) पहिलो दीरय करो पाछिलो लघु तौ तात भयो अर्थ माता पिता अथवा धातु देस विचार करो आठ में कौन चाही तो तामा ताको विपरीत करें माता ताको पाछिल वरन तकार दीरघ लघु ते तात बार नाम जल ताको बिप- रीत करो तो लज होत ताको भासा में लघु दीरघ होत है सो लाज भये (भई) अर्थ माता पिता की (मोकों) लाज नहीं है (काहे के) ये जनम के संगी