पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/११२

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तासुबंस प्रसंस में भौ(१)चंद* चारू नवीन॥ भूप प्रथी(२)राजदोनों तिन्है ज्वाला देस ।

  • दीपनिर्वाण नामक उपन्यास के पहले भाग में मुन्शी उदितनारायण

वर्मा ने लिखा है। ____ 'कवि चन्द यथार्थ में एक प्रसिद्ध राजपूत महाकवि पृथ्वीरान के परम बन्धु थे, और पृथ्वीराज के सहबास ही में सर्वदा रहते थे । चन्दकवि पुस्तक में कवि- चन्द्र के नाम से लिखे गये हैं । इङ्गल्याण्ड के सर फिलिसिड्नी और सर वाल- टर रयाली के समान वे काव्य विषय में निपुण थे, युद्ध विषय में भी वैस हो दुरदर्शी थे, किन्तु काव्य ही उन के यश का चिन्ह है । उन का सकल महा- काव्य राजपूत लोगों के, विशेषतः पृथ्वीराज के कात्ति कलाप और शूरता परा- क्रम में वर्णन हुआ है । सुतराम् समस्त आयजाति में जैसे रामायण और महा- भारत आदरणीय है, ग्रीक (यूनान) लोगों में जैसे होमर आदरणीय है, राजपूत लोगों में चन्दकवि का काव्य समूह भी वैसे ही आदरणीय है। किन्तु चन्दकवि का कपोल कल्पित काव्य बहुत का है, प्रकृत बत्तान्त का भाग अधिक है। दु:ख का विषय यही है कि उन का समस्त जीवनचरित्र कहीं भी नहीं पाया जाता और उन के काव्य समूह का अधिकांश प्रायः प्राचीन हिन्दीभाषा में छन्दोबद्ध है।' वंदकवि के विषय में शिवसिंह सरोज में यों लिखा है- 'चंदकवि प्राचीन बंदी जन संभल निवासी संवत् ११९६ ए.चंदकवि महाराज बीसल देव चौहान रनथंभौर वाले के प्राचीन कवीश्वर के औलाद में थे संवत् ११२० में राजा पृथ्वीराज चौहान के पास आये मंत्री औ कवीश्वर दोनों पद को प्राप्त हुवा औ पृथ्वीराज रायसा नाम एक ग्रन्थ एक लक्ष श्लोक संख्या भाषा में रचा जिस्में ६९ ग्ड है औ जिस्में पुरानी बोली हिंदुवों की है इस ग्रन्थ में चंदकवि ने संवत् ११२० से संवत् ११४९ तक पृथ्वीराज का जीवनचरित्र महाकविताई के साथ बहुत छंदों में वर्णन किया है छप्पै छंद तो मानो इसी कवि के भाग में थीं जैसा चौपाई छंद श्री गोसाईं तुलसीदास के हिस्से में पडी थीं इस ग्रंथ में छत्रियों की वंसावरी औ अनेक युद्ध औ आबू पहार का माहात्म्य औ दिल्ली इत्यादि राजवानियों की शोभा औ छत्रियों के सुभाव चालचलन