तनय ताके चार कीन्ही प्रथम आप नरेस। दूसरे(३)गुनचंद तासुतसीलवंदसरूप।(४) व्योहार बहुत विस्तार पूर्वक वर्णन किये हैं ए कवि केवल कवीश्वर ही नहीं थे वरन नीति शास्त्र औ चारन के काम काज में महा सूर बीर थे संवत् ११४९ में साथ पृथ्वीराज के ए भी मारे गए इन्हीं के औलाद में सारंगधर कवि थे जिन्होंने हमीर रायसा औ हमीर काव्य भाषा में बनाया है। " - सारंगधर कवि बंदीजन चंद कवीश्वर बंसी संवत् १३९७ ए प्राचीन कवि चंद कीश्वर के वंश में संवत् १३३० के करीब उत्पन्न हुए थे। और राजा हमीर देव चौहान र नथंभौर वाले के इहां जो राजा विशाल देव के वंश में था रहा करते थे इन्होंने हमीर रायता १ औं हमीर काव्य २ ए दो ग्रन्थ महा उत्तम बनाए हैं हनीर रायमा राजा हमीर की प्रशंसा में लिखा है। दोहा—सिंह गवन सपुरुष बचन, कदलि फरै एक बार । तिरिया तेल हमीर हठ, चढे न दूजी बार ॥ १ ॥ सवैया-तंगन समेत काटि बिहित मतंगन सों रुधिर सो रंगरणमंडल सो भरिगो। सारंग सुकवि भने भूपति भवानीसिंह पारथ समान महाभारत सो करिगो ॥ मार दखि मुगल तुराबखान ताहि समय काहू असन जाना काहू नट सो उचरिगो । बाजीगर कैसी दगाबाजी करि हाथी हाथा हाथी हाथा हाथी ते सहादति उतरिगो॥१॥ ____चंदकवि के विषय में पंडित श्रीमोहनलाल विष्णुलाल पंड्या ने पृथ्वीराज रासौ की टिप्पणी में लिखा है। चंद बरदई इस महाकाव्य का ग्रंथ-कर्ता कि जो हिन्दुओं के अंतिम बाद- शाह पृथ्वीराज जी चौहान का लँगोटिया मित्र और उन के दरबार का कवि- ज था । वह भE जाति जो आज कल राव करके कहलाते हैं उस के जगात मक गोत्र का था और उस के पुर्षी पंजाब देश के लाहौर नगर के रहनेवाले । और उन की यजमानी अजमेर के चौहानों की थी। उस की जैसी शूर बीरता स महाकाव्य से विदित होती है उस का मुख्य कारण यही है कि वह पंजाब श की अद्यावाध प्रसिद्ध बीर भूमि के तत्त्वों से उत्पन्न हुआ था और राजपूताने । हृदयरूपी अजमेर नगर में बड़ा हुआ था । वह षट-भाषा, व्याकरण, काव्य, हित्य, छंद शास्त्र, ज्योतिष, वैद्यक, मंत्रशास्त्र, पुराण, नाटक और गान आदिक
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