पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सपी की उक्ति सपी सों। देषो सोभा सिंधु में समात हैं। अथ सोभासिंधु है राधास्याम को मुष स्यामा अरु स्याम सकल रात्री में रस- बस होय प्रभात जगे हैं। पाहनसुत दरपन सनमुष देषत हैं तामें यह अच- रज है। चार जलजात चंद है दो मुष दो प्रतिबिंब औ कनक नीलमणि के गात चारि दो बिंब दो प्रतिाबब अरु उदित जराऊ भूषन आठो दो तयाना दो कुंडल बिंब के चारि प्रतिबिंब के चारि तिन की जाति सो रवि शशि छबि छपि जाति है। अरु चंचल पक्षी आठ नेत्रन के चारि बिंब चारि प्रतिबिंव । अरु आठ कमल ठोडी मुष ठकुरायन ठाकुर के चारि बिंब चारि प्रतिबिंब तिन की सोभा नहीं वरनी जाति । अरु चारि कीर नासिका दो विंब दो प्रतिबिंब अरु पारस दसन विद्रुम वोठ सो अलीगन वोठ को काजर-नायक नै नायका नेत्र को चुम्बन कियो तब काजर लगो। अरु वही मुष नायका ने ताते नायक ने ऐसी जो सुष की रासि दूनो के मुष तिन पै सूरदास बलि जात हैं ॥ ९ ॥ राग कान्हरो। बिधुबदनी अरु कमल तिहारै। सुमनात लै कमल सुमंजित धनपति धाम को नाम संवारै ॥ तरनि तात बनितासुत ता छवि कमलनि रचिरचि ग्रंथ सँवारे । कमल कमल पर रेष बुता- वति सारँगरिपु पाहन गनि ठारै॥ उर हारावलि मेलति कमलनि मनहुं इंदु पारस ढिग पारे। सरस्याम के नामहि जीतन कमलापति के पदहि बिचारै ॥१०॥

विधु बदनी इति । सषी की उक्ति सपी सों कि हे विधुवदनी