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पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१४

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[१३] ___ उक्त सषी की कै वृषभानदुलारी राधा नंदनंदन देष के अरु सपन की भीर चतुराई करी शिवआनन पंचमी को चंद लिपो तापै बिंदु दयो कै पांच घरी रात बीते में मिलिहैं अरु कर कुचन सो मिलाए में तुम को हृदय में राखत है या स्वल्प कहे सूछमअलंकार क्रिया बिदगधा नाइका ने स्याम समुझाए यामें नाइक को अभिप्राय जान अपनो अभिप्राय जनायो याते सूछम अलंकार अरु क्रिया ते चातुरी (तातें क्रिया विद्- ग्धा नाइका ताको लच्छन ) ते कहे क्रिया विदगधा भई दोहा-सुच्छम पर आश्रय लखें, करै क्रिया कुछ भाइ। क्रिया चातुरी ते कहैं, क्रिया विदग्धा आइ ॥१॥१२॥ कंजभवन ते आज राधिका अलस अकेलो आवत । अंग अंग प्रति रंग रंग की सोभा सुख दरसावत ॥ दिनपतिसुत अरिपितापुत्रसुत सो निज करन सभा रे । मानहु कंज रिच्छ गहि तीजी कंचन भू पर धारे ॥ सीतासत्रुपिता की सैना पाट छिद्र इम पाए। सिंधुसत्रु भषपति पितु मानो रन ते घायल आए। बिथुरि गयो सारंगसुत सिगरी सो मन उपमा भासी । गिरजापतिभूषन पै मानह मुनि भष पंक प्रकासी ॥ संभावन भूषन कर लछित मुघर सषी मुसुकाई। सूरदास वृषभाननंदनी मुर घर चली लजाई ॥ १३ ॥