प । [ १३९ ] मध्य समात ॥ सारंग पर सारंग पेलत है सारंग ही सो हँसि हँसि जात । सारंग स्याम और हू सारंग सारंग सों करै बात ॥ असि सारंग राषि सारंग को सारँग गहि सारंग को जात ॥ तौले राषि सारंग सारंग को सारंग ले आऊ हाथ । सोइ सारंग चतुरानन दुर्लभ सोडू सारंग संभु मुनि ध्यात ॥ सेवत सूरदास सारंग को सारंग ऊपर बलि जात ॥२४॥ देषिये चार कमल इति । सपी की उक्ति सपी प्रति । हे सषी आज चार कमल देषु नायका को कुच कमल दो औं कृष्ण के कर कमल दो अरु कमल को कमल गहे ते जो कृष्ण के कर कमल जिन्हे कुच कमल गहे हैं तिन करन को राधा के जो कर कमल है ते गहि के रोकत हैं कमल कर कमल में समान है. जुदे नाहीं जाने जात अरु सारंग नाम चद्रवदन कृष्ण को सो राधा के चंदबदन पै पेलै है अरु ताही सारंग मुष सों हंसि हंसि जात है अरु सारंग जो स्याम कमल नेत्र सों औरटू सारंग के हैं लाल कमल भये हैं औ सारंग जो कृष्ण के कमल नयन हैं तिन सों बातें करे हैं । कहैं इसारा करै हैं अरु सारंग अरि जो पट ते की ओट तू राषु नायक नायका को काहे सारंग जो रात्री औ सारंग जो चंद ताको लै कै गयो चाहै है तो लों राषु । सारंग नाम सषी सारंग दीप को जौलों सारंग नाम नेह लै आऊं जैसा रंग राधाकृष्ण चतुरानन ब्रह्मा तिन को दुर्लभ हैं जिन सारंग को संभु मुनि ध्यान धरै हैं तेई
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